पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 27.pdf/३४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३११
कुछ संस्मरण

कार्य है, जिसे सब लोग कर सकते हैं। ऐसा कार्य एक है, और वह है खादीका प्रचार। सब लोग शुद्ध खादी पहननेका निश्चय कर सकते हैं और यज्ञार्थ अर्थात् देशके निमित्त आधा घंटा नित्य चरखा चलानेकी प्रतिज्ञा कर सकते हैं। इसमें किसीको कोई कठिनाई नहीं हो सकती। इस प्रकार लोग नित्य देशबन्धुका स्मरण कर सकते हैं। यदि इस प्रकारकी प्रतिज्ञा लाखों लोग लें तो क्या नहीं हो सकता। हम विदेशी कपड़ेका सर्वथा त्याग कर सकते हैं। इससे हममें आत्मविश्वास पैदा होगा। देशबन्धु चाहते थे कि लोगोंमें आत्मविश्वास आए। वे चाहते थे कि हम लोग स्वावलम्बी बनें; इसलिए हमें स्वावलम्बी बनना चाहिए। वे चाहते थे कि हम हिन्दू, मुसलमान और पारसी आदि सब लोग संगठित हों। हम चरखेके द्वारा ऐसा संगठन साध सकते हैं। इसी कारण मैं तो चाहता हूँ कि सभी लोग खादी पहनने और चरखा चलानेकी प्रतिज्ञा अवश्य करें।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २८-६-१९२५
 

१८८. कुछ संस्मरण

इस अंकमें लिखनेके लिए और क्या बात सूझ सकती है?

पहाड़-जैसे देशबन्धु उठ गये; अखबार उन्हींकी चर्चासे भरे हुए हैं। देशबन्धुकी छोटी-छोटी बातें भी उनमें बहुत चावसे छापी जा रही हैं। 'सर्वेट' ने विशेषांक ही निकाला है। 'वसुमती' बंगालका सबसे बड़ा समाचारपत्र है। वह विशेषांक निकालनेकी तैयारियाँ कर रहा है। श्रीमती बासन्ती देवीके पास हजारसे ज्यादा शोक-सूचक तार आ चुके हैं; और अभी सुदूर देशोंसे आते जा रहे हैं। जगह-जगह शोक-सभाएँ हो रही हैं। शायद ही ऐसा कोई शहर, जहाँ कांग्रेसका झण्डा फहराता है, बचा होगा जहाँ सभा न की गई हो।

कलकत्ता गत १८ तारीखको पागल ही हो गया था। अंक-शास्त्री कहते हैं कि वहाँ दो लाखसे कम आदमी इकट्ठे न हुए होंगे। इसके अलावा स्त्री-पुरुष रास्तोंपर या ट्रामोंकी छतोंपर खड़े थे, तारके खम्बोंपर चढ़े हुए थे और झरोखोंमें प्रतीक्षामें बैठे थे।

साथ भजन-कीर्तन तो था ही। पुष्पोंकी वृष्टि हो रही थी। शव खुला हुआ था; परन्तु उसपर फूलोंके हारोंका ढेर लगा था।

शवयात्राके आगे स्वयंसेवक फुलवारी लेकर चल रहे थे, जिसमें फूलोंसे सज्जित चरखा रखा था। शवयात्रा स्टेशनसे साढ़े सात बजे चलकर तीन बजे श्मशानमें पहुँची और साढ़े तीन बजे शवका अग्नि-संस्कार आरम्भ किया गया।

श्मशान घाटपर भीड़ उमड़ पड़ रही थी। भीड़के रेलेको रोकना बहुत ही कठिन हो रहा था। मैं समझता हूँ कि यदि मुझे हट्टे-कट्टे लोगोंने अपने कन्धोंपर बिठाकर इस उमड़ती हुई भीड़के आगे ऊँचा न कर दिया होता तो भयंकर दुर्घटना हो जाती।