पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 27.pdf/३४८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३१६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वाइसरायसे डरना कायरता है, उसी तरह दरबानको डराना भी कायरता है। इसमें सूक्ष्म आत्मदर्शन आ जाता है। यही राष्ट्रधर्म है। इस कारण लोग जाने या अनजाने, अनिच्छासे भी, राष्ट्रधर्मके पालनकर्ताओंको पूजते हैं। लोकमान्य ब्राह्मण थे। उनका धर्म-ग्रन्थोंका ज्ञान पण्डितोंके लिए भी गर्वनाशक था। परन्तु उनकी पूजा की जाती थी, इसका कारण उनका वह ज्ञान न था। देशबन्धु ब्राह्मण नहीं थे। वे वैद्य समाजमें जन्मे थे। परन्तु लोगोंको उनके वर्णसे कोई सरोकार न था। देशबन्धुको संस्कृतका ज्ञान नहीं था। उन्होंने धर्मग्रन्थोंका अध्ययन भी नहीं किया था। उन्होंने सिर्फ राष्ट्रधर्मका पालन किया था। उन्होंने निर्भयता साधी थी। इस कारण उनके आगे शास्त्रज्ञ भी झुकते थे। इसीलिए इस अविस्मरणीय दिन लोगोंके साथ उन्होंने भी अपने आँसू बहाये। राष्ट्रधर्मका अर्थ है——व्यापक प्रेम। वह विश्व-प्रेम नहीं है; परन्तु उसका एक बड़ा भाग है। वह प्रेमका धवलगिरि नहीं; परन्तु प्रेमका दार्जिलिंग है। वहाँसे धवलगिरिकी सुवर्णकान्ति दिखाई देती है, और देखनेवाला मनमें सोचता है——यदि प्रेमका दार्जिलिंग सुहावना है तो यह प्रेमका धवलगिरि जो यहाँ मेरे सामने जगमगा रहा है, कितना सुहावना होगा? राष्ट्रप्रेम विश्वप्रेमका विरोधी नहीं, बल्कि उसका नमूना है। राष्ट्रप्रेम अन्तमें मनुष्यको अवश्य ही विश्वप्रेमके शिखरपर ले जाता है। इसीलिए लोग राष्ट्रप्रेमीकी बलिहारी जाते हैं। लोगोंने कुटुम्ब प्रेमका स्वाद तो चख लिया है! इसलिए उनके हृदयमें उसके लिए मोह नहीं है। वे ग्राम-प्रेमको कुछ-कुछ समझते हैं। परन्तु राष्ट्रप्रेमको तो लोकमान्य या देशबन्धु जैसे ही समझ सकते हैं। चूँकि लोग खुद भी ऐसा बनना चाहते हैं, वे इसीलिए उन्हें पूजते हैं।

देशबन्धुकी उदारता असीम थी। उन्होंने लाखों कमाये और लाखों खरचे। उन्होंने किसीको भी रुपयेकी सहायता देनेसे इनकार नहीं किया; यहाँतक कि कर्ज करके भी सहायता की। उन्होंने गरीबोंके मुकदमे बिना फीस लिए लड़े। कहते हैं कि उन्होंने श्रीयुत अरविन्द घोषके मुकदमेमें नौ महीने तक परेशानी उठाई। अपनी गाँठसे रुपये खरचे और एक पाई भी फीस नहीं ली। इस उदारतामें उनके राष्ट्रप्रेमकी अभिव्यक्ति है।

वे मुझसे भी लड़े; परन्तु क्या मुझे परेशान करने या गिरानेके लिए? नहीं, वे लड़े तो देशसेवाके लिए और उसीके सिलसिलेमें। जो वाइसरायसे नहीं डरता था वह मुझसे क्या डरता? उनकी विचारसरणी थी 'यदि सगे भाईका भी काम मुझे राष्ट्र-प्रगतिके खिलाफ दिखाई देगा तो मैं उसका भी विरोध करूँगा।' सबकी विचारसरणी ऐसी ही होनी चाहिए। हमारा आपसी विरोध सगे भाइयोंके विरोधकी तरह था। हम दोनों ही एक-दूसरेसे अलग होना नहीं चाहते थे। चाहते तो वह राष्ट्रप्रेमकी न्यूनता होती। इस कारण यद्यपि ऐसा दिखता था कि हम एक-दूसरेसे अलग हो रहे हैं फिर भी हम एक-दूसरेके नजदीक आते जा रहे थे। यह हमारे हृदयकी परीक्षा थी। देशबन्धु इस परीक्षामें उत्तीर्ण हो गये किन्तु मुझे अभी उत्तीर्ण होना है। अभी मुझे देशबन्धु और उनके अन्य साथियोंसे वह प्रेम निभाना है। यदि मैं उसमें विफल हो जाऊँ तो आप मुझे परीक्षामें अनुत्तीर्ण समझें।