पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 27.pdf/३५०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३१८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मामूली योद्धाका भी उठ जाना खलता है; दस हाथवाले दासका उठ जाना तो असह्य ही हो गया है।

फिर भी मैं ठहरा आस्तिक; इससे मेरी हिम्मत नहीं टूटी है। ईश्वर जैसा चाहे वैसा खेल खेल सकता है। उसका क्या दुःख और क्या सुख? जिन घटनाओंपर अपना नियन्त्रण नहीं हैं वे अनुकूल या प्रतिकूल कोई भी रूप लें, इससे कोई अन्तर नहीं पड़ता। मुझे अपने कर्त्तव्यका ज्ञान है; भले ही वह गलत हो। जबतक वह मुझे उचित मालूम होता है तबतक यदि मैं उसका पालन करता हूँ तो मैं अपनी जिम्मेवारीसे मुक्त हो जाता हूँ। मैं ऐसे तत्त्वज्ञानका सहारा लेकर अपने मनको आश्वासन दे रहा हूँ। मेरा स्वार्थ मुझे देशबन्धुके वियोगको भूलने ही नहीं देता।

परन्तु देशबन्धुके लिए मृत्यु ही कहाँ है? देशबन्धु दासका देहावसान ही तो हुआ है। इससे क्या उनके गुणोंका अन्त हो सकता है? उनके गुण तो मौजूद ही हैं। हम उन गुणोंको अपना लें तो देशबन्धु हम सबके भीतर जीवित ही हैं। जिस मनुष्यने इस संसारकी सेवा की हो वह नहीं मरता। राम और कृष्ण चले गये, यह कहना ही मिथ्या है। राम और कृष्ण तो इस समय भी अपने असंख्य पुजारियोंके हृदयोंमें जीवित हैं। इसी तरह हरिश्चन्द्र भी। हरिश्चन्द्रका अर्थ उनका शरीर नहीं, उनका सत्य है। वे सत्यके अनेक पुजारियोंके भीतर जीवित हैं। यही बात देशबन्धुके सम्बन्धमें भी सत्य है। देशबन्धुका क्षणिक देह गया, क्या इससे उनके सेवाभाव, उदारता, देशप्रेम और निडरता आदि गुण भी चले गये? थोड़े या बहुत अंशमें ये गुण समाज में बढ़ते ही जायेंगे।

इसलिए देशबन्धु मर जानेपर भी जीवित हैं। जबतक हिन्दुस्तान है तबतक देशबन्धु भी हैं ही। इसीलिए आइए, हम कहें: "देशबन्धु चिरंजीव हों!"

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २८-६-१९२५
 

१९१. गंगा-स्वरूप बासन्ती देवी

मैंने कुछ वर्ष पूर्व स्वर्गीया रमाबाई रानडेसे अपनी भेंटका वर्णन[१] किया था। जहाँतक मुझे उनका परिचय मिला है, वे एक आदर्श विधवा थीं।

इस बार मेरे नसीबमें एक महान् वीरकी पत्नीके वैधव्यकी आरम्भिक दशाका चित्र देना बदा है।

बासन्ती देवी से मेरा सामान्य परिचय १९१९ से था; किन्तु उनसे मेरा प्रगाढ़ परिचय १९२१ में हुआ था। मैंने उनकी सरलता, चतुराई और उनकी अतिथि सेवाकी बातें बहुत सुनी थीं और मुझे उनका कुछ अनुभव भी हुआ था। दार्जिलिंगमें मेरा सम्बन्ध जैसे देशबन्धुसे बढ़ा था वैसे ही बासन्ती देवीसे भी बढ़ा था, किन्तु उनके विधवा हो जानेके बाद तो उनसे मेरा यह परिचय बहुत ही बढ़ गया है। कहा जा

  1. देखिए खण्ड १७, पृष्ट ४६३-६४ ।