पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 27.pdf/३५५

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१९४. पत्र : देवदास गांधीको

सोमवार [२९ जून, १९२५][१]

चि॰ देवदास,

यदि मैं यह कार्ड न लिखूँ तो फिर शायद पत्र ही न लिख सकूँ। तुम्हारा सुन्दर पत्र मुझे मिल गया है। उसकी शैली और गुजराती दोनों बहुत अच्छी हैं। अब तुम 'यंग इंडिया' और 'नवजीवन' में कुछ लिखना आरम्भ कर दो तो अच्छा हो। मैं तो धनसंग्रहमें व्यस्त हूँ। कृष्णदासको पत्र नहीं मिला। वा कातती है, यह बहुत अच्छी बात है। ओता गांधीकी सारी सन्तानके नाम-धाम तो मैं भी नहीं बता सकता। तुमने इस सम्बन्धित सामग्रीका संग्रह आरम्भ किया है, सो ठीक ही है। उत्तमचन्द बापाके पुत्र तो छ: थे, यह सुना है। खुशालभाई अधिक बता सकेंगे। बालगंगाधर आ गया, इससे मुझे प्रसन्नता हुई है। उससे यह कह देना। उसके सम्बन्धमें मुझे भय तनिक भी नहीं है। कल्याणकृतकी दुर्गति होती ही नहीं।[२] बालकृष्णकी भूलें भी आखिरकार उसके विकास में ही सहायक हैं।

मैं देशबन्धुका श्राद्ध यथोचित रूपमें कर रहा हूँ।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (जी॰ एन॰ २०४५) की फोटो-नकलसे।

१९५. पत्र : जमनालाल बजाजको

सोमवार [२९ जून, १९२५][३]

चि॰ जमनालाल,

तुम्हारा पत्र मिला। मैंने इस बार अलवरके सम्बन्धमें कुछ अलग ढंगसे लिखा तो है। मुझे आशंका है कि वहाँ जानेके सम्बन्धमें कोई निश्चय करनेमें कुछ समय लगेगा। ऐसा लगता है कि मैं तो अगस्त शुरू होनके पहले तो नहीं ही जा सकूँगा। मैं जुलाईका आखिरी हफ्ता आश्रममें ही बिताना चाहता हूँ। और उसके बाद भ्रमण करूँगा। तुम १६ तारीखको तो आ ही रहे हो। मैंने वहाँसे साबरमती तार दिया था, वह तुम्हें मिल गया होगा।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (जी॰ एन॰ २८५४) की फोटो-नकलसे।

  1. डाककी मुहरमें कलकत्ता, ३० जून, १९२५ है। सोमवार २९ जूनका था।
  2. गीता, अध्याय ६-४०।
  3. डाककी मुहरमें कलकत्ता, ३० जून, १९२५ है।