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१९६. पत्र : मणिबहन पटेलको

[कालीघाट
कलकत्ता]
सोमवार [२९ जून, १९२५][१]

चि॰ मणि,

तुम्हारा पत्र मिला। पिताकी सेवा करनेके प्रसंग ढूँढ़ती रहना। वस्तुतः वे ढूँढ़ने नहीं पड़ते। फिर भी तुमने जो लिखा है सो मेरी समझमें आ गया है। डाह्याभाई 'नवजीवन' में जाता ही है तो उसे वहाँ चित्त लगाकर काम करना चाहिए। स्वामीका[२] अनुशासन माननेमें बहुत लाभ है। वह सुन्दर तालीम है। वे मजदूरीका ही काम क्यों न सौंपे, वह उसे भी दिल लगाकर करे। मैं कभी थोड़े वक्तके लिए आ जाऊँगा, परन्तु कब आ सकूँगा यह तो ईश्वर ही जाने। बापूके स्वास्थ्य-समाचार मुझे देती रहना। बापूके अंग्रेजी हिज्जे कच्चे हैं; अतः तुम्हारे भी वैसे ही रहें, यह क्या जरूरी बात है? बापके गुणोंका अनुसरण किया जाता है, दोषोंका कदापि नहीं।

बापूके आशीर्वाद

[गुजरातीसे]
बापुना पत्रो–४ : मणिबहेन पटेलने
 

१९७. तार : सुधीर रुद्रको[३]

कलकत्ता
३० जून, १९२५

आपके दुःखमें मेरा हृदय और मेरी दुआएँ आपके साथ हैं। ईश्वर आपको क्षति सहनेकी भरपूर शक्ति देगा। स्नेह।

गांधी

अंग्रेजी प्रति (सी॰ डब्ल्यू॰ ६०५०) से।

सौजन्य : श्रीमती रुद्र, इलाहाबाद

  1. साधन-सूत्रके अनुसार।
  2. स्वामी आनन्दानन्द।
  3. यह तार गांधीजीने प्रोफेसर सुशील कुमार रुद्रके देहान्तपर कलकत्तासे ३० जूनको भेजा था।