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१९८. भाषण : यूनिवर्सिटी इन्स्टीट्यूट, कलकत्तामें[१]

३० जून, १९२५

महात्माजीने...देशबन्धुकी भूरि-भूरि प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि देशबन्धु जीवन-भर एक सरापा योद्धा ही रहे। उन्होंने अनेक संघर्षोमें भाग लिया और प्रतिद्वन्द्वोंको कभी नहीं बख्शा। किन्तु जहाँतक मुझे याद है, उन्होंने कभी किसीकी परेशानीका अनुचित लाभ नहीं उठाया। दार्जिलिंगमें उनके सहवासमें बीते मेरे अन्तिम पाँच दिन कभी भुलाये नहीं जा सकते, क्योंकि उन दिनोंमें मैं उनके जीवनके श्रेष्ठ गुणोंको जान सका था। उन्हें अपने किसी विरोधीके प्रति कोई द्वेष नहीं था। वे अपने देशके हितके काममें लगे हुए हर व्यक्तिसे सहयोग करनेको सदैव तत्पर रहते थे। चितरंजन दासने समूचे देशको अपने सच्चे प्रेमसे जीत लिया था; इसीलिए उन्हें देशबन्धुकी उपाधिसे विभूषित किया गया था। उन्हें यह उपाधि देशवासियोंने देशके हितमें किये गये उनके महान् त्यागके प्रति आदरभाव व्यक्त करनेके उद्देश्यसे दी थी। पूर्वी बंगालके अपने दौरेमें मैं हजारों युवा और वृद्ध लोगोंके सम्पर्कमें आया। उनकी भावनाओंसे मैंने समझ लिया है कि उनके दिलोंमें देशबन्धु दासके प्रति कितना स्नेह, प्यार और आदर है। मेरे पास अब भी रोजाना विद्यार्थियोंके ऐसे सैकड़ों पत्र आ रहे हैं जिनमें उनकी पवित्र और प्रेमपूर्ण स्मृतिके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित हुआ करती है। देशबन्धु बंगालके नवयुवकोंके लिए पिता-तुल्य थे। उनकी छत्रछाया प्रत्येक नवयुवकको संरक्षण प्रदान करती थी। मेरा तो खयाल है कि उनकी मृत्युसे सम्पूर्ण विद्यार्थी समाजने अपना सच्चा नेता खो दिया है। यदि ईश्वर उन्हें कुछ दिन और जीवित रखता तो वे नवयुवकोंको उनके लक्ष्यतक पहुँचानमें उनके मार्गदर्शक बन सकते थे। उनकी उदारता और विद्यार्थियोंके प्रति उनका प्रेम भी असीम था। मैं यहाँ भारतमाताके उस महान् सपूतका गुणगान करने नहीं आया हूँ बल्कि मैं चाहता हूँ कि बंगालके नवयुवक यह समझकर कि देशबन्धुने उनके लिए कितना-कुछ किया है, उस सबके लिए उनके कृतज्ञ हों। मुझे विश्वास है कि बंगालके नवयुवक देशबन्धु दासके लिए समुचित स्मारक खड़ा करनेमें मेरी मदद करेंगे। मैं यह नहीं चाहता कि आप लोग अपना पैसा ही मुझे दें, मैं तो यह भी चाहता हूँ कि आप लोग अपने अभिभावकों, मित्रों और सम्बन्धियोंके पास जायें और इस कामके लिए उनसे धन माँगें। महात्माजीने अपने भाषणके अन्तमें कहा कि बंगालके नवयुवकों-

  1. गांधीजीकी अध्यक्षतामें हुई इस सभामें विद्यार्थी और कलकत्ताके प्रमुख नागरिक बहुत बड़ी संख्यामें शामिल हुए थे।