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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लिए एकत्र हुई थीं। अब उनमें से एकका शरीर छूटनेपर उनका वह सम्बन्ध उलटा अधिक दृढ़ हो गया। इसलिए आज हम यहाँ आँसू बहानेके लिए एकत्र नहीं हुए हैं। हमें चाहिए कि हम उनके गुणों अर्थात् उनके अमर शरीरका स्मरण करें और उनके गुणोंका ताना-बाना अपने जीवनमें बुन लें।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १२-७-१९२५
 

२०१. प्रश्न-माला

१४ मई, १९२५ के 'यंग इंडिया' में फरीदपुरके अछूत जातिके किन्हीं सज्जनोंके साथ आपकी भेंटका जो विवरण[१] छपा है उसमें आपने उनसे आत्मशुद्धिके विचारसे कुछ काम करनेका अनुरोध किया है। किन्तु आत्मशुद्धिसे आपका मतलब क्या है? आत्मशद्धिके बाहरी लक्षण क्या है? आत्मशुद्धिमें कायिक, मानसिक और वाचनिक, तीनों शुद्धियाँ आती हैं, अथवा इनमें से कोई एक ही?

आत्मशुद्धिका मतलब है मन, वाणी या शरीरकी समस्त अशुद्धियाँ दूर करना। इन 'अछूत' मित्रोंसे अनुरोध किया गया था कि वे बुरी बात न सोचें, झूठ न बोलें अथवा किसीसे गाली-गलौज न करें तथा शरीरको भली-भाँति स्नान-मज्जन, शुद्ध भोजन द्वारा——मुरदार मांस अथवा अन्य अशुद्ध भोजन, मद्य या अन्य मादक पदार्थोंको त्यागकर——पवित्र रखें।

२. यदि कोई जाति अथवा व्यक्ति उस स्तरतक पहुँच जाता है तो क्या उसके साथ अछूत-जैसा व्यवहार किया जा सकता है?

यदि कोई व्यक्ति उस स्तर तक नहीं पहुँचता——हममें से अनेक उस आदर्श स्थितितक नहीं पहुँच सकते, तो भी वह अछूत नहीं माना जा सकता। यदि यह मानदण्ड हमपर लागू किया जाये तो हमें भी उसे प्राप्त करनेमें कठिनाई होगी।

३. हिन्दू जातिके समस्त वर्गोंमें खान-पान अथवा पूजाके विषयमें कोई एकता नहीं है। आपके खयालसे उनमें इस तरहकी एकता उत्पन्न करनेके लिए पहला कदम क्या है?

मैं इस प्रकारकी एकता उत्पन्न करनेका कोई प्रयत्न नहीं कर रहा हूँ। मैं जिस ऐक्यके लिए लालायित हूँ, वह हृदयोंका ऐक्य है। यह सभी बन्धन-बाधाओंसे परे है तथा उनके होते हुए भी कायम रह सकता है। हम उसी एक परमात्माकी विभिन्न सूत्रोंमें और विभिन्न नामोंसे आराधना करते हैं।

४. यह सुझाव दिया गया है कि यदि पूजाके सार्वजनिक स्थानोंमें तथा जलपान आदिकी दुकानोंमें साफ-सुथरे हिन्दुओंको प्रवेशकी अनुमति दे दी जाये तो वह एकता उत्पन्न करनेकी दिशामें पहला कदम होगा। इस विषयमें आपकी सम्मति क्या है?

  1. देखिए "अस्पृश्योंके साथ बातचीत", ३-५-१९२५ या इससे पूर्व।