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प्रश्न-माला

पूजाके सार्वजनिक स्थान उन सभीके लिए खुले होने चाहिए जो सामान्य शिष्टाचारके नियमोंका पालन करें। पोशाकमें सफाईके स्तरका निश्चय कौन करेगा? ये बातें तो कानून द्वारा नहीं, बल्कि लोकमत द्वारा नियन्त्रित की जाती हैं। यदि कोई जलपान आदिकी दुकान स्वयं स्वच्छ है तो वह निस्सन्देह उन लोगोंको सौदा बेचनेसे इनकार कर देगी जो गन्दे हैं। यदि वह ऐसा न करे तो उसकी ग्राहकी टूटने लगेगी। लेकिन यदि कोई मिष्टान्नविक्रेता किसी 'अछूत' को अपना सौदा बेचनेसे उसके अछूत कहे जानेके कारण इनकार करता है तो उसे अपना धन्धा चलानेका कोई अधिकार नहीं है।

५. आपका अस्पृश्यताका अर्थ कठिन है। उच्च वर्गोंके हिन्दू भी अपने उन बच्चोंका, जिनका उपनयन संस्कार नहीं हुआ है, छुआ पानी नहीं पीते और पकाया हुआ खाना नहीं खाते। क्या आप इसे अस्पृश्यता कहते हैं?

मैं इसे अस्पृश्यता नहीं कहता। मैंने बीसियों बार साफ-साफ कहा है कि हिन्दूधर्ममें पंचम वर्ण जैसी कोई चीज नहीं है। इसलिए अछूतोंको वे सभी अधिकार मिलने चाहिए जो चारों वर्णोंको सामान्यतः प्राप्त हैं।

६. कुछ लोगोंका सुझाव है कि पानी पीनेपर बहुत ज्यादा जोर देनेके बजाय उच्च जातिके सवर्ण हिन्दुओंके मनसे ऊँच-नीचकी भावना दूर करने तथा उनमें आपसी प्रेम और सहायताका भाव बढ़ानेके लिए प्रयत्न करना बेहतर होगा। क्या आप इस सुझावसे सहमत हैं?

मैं इस सुझावसे वहीं सहमत हूँ जहाँ उससे पाखण्डपर पर्दा नहीं पड़ता। आप किसी पेड़की परीक्षा उसके फलसे ही करेंगे। मैं खाने और पीनेपर कभी जोर नहीं देता। मैं ऐसा तभी करता हूँ और करना चाहता हूँ जब कोई आदमी किसी अस्पृश्यका छुआ पानी पीनेसे इसलिए इनकार करता है कि वह अछूत कहलाता है। क्योंकि उसका यह इनकार उसके ऊँचेपनके घमण्डका सूचक होता है।

७. इस ध्येयकी प्राप्तिका आसान और सीधा तरीका सामूहिक धार्मिक कथा-कीर्तनों तथा धार्मिक मेलों द्वारा, जिनमें लोग चाहे वे किसी भी मत और जातिके हों, वैष्णव धर्मकी शिक्षाओंका प्रचार करना है। यह तरीका चार सदियोंसे भी अधिक कालसे प्रचलित है। इस सुझावके विषयमें आपकी क्या सम्मति है?

मैंने कीर्तनोंके असरके बारेमें पूरी तरह विचार नहीं किया है। लेकिन मैं किसी भी अच्छे तरीकेका जिससे दम्भंपूर्ण उच्चताकी भावनाकी यह दीवार ढहे, स्वागत करनेके लिए तैयार हूँ।

८. यह बात लगभग मानी हुई हो है कि बंगालमें हिन्दू जाति नष्ट हो रही है। आपके खयालसे उसके इस क्रमिक ह्रासका मुख्य कारण क्या हैं? उसका यह ह्रास किन उपायोंसे रोका जा सकता है? यह भी सभी मानते हैं कि हिन्दुओंका ऊँचाई, शक्ति तथा जीवटकी दृष्टिसे शारीरिक ह्रास हुआ है। उनमें इन गुणोंका उत्कर्ष फिर कैसे किया जा सकता है?