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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैंने भी ऐसे विवरण देखे तो हैं; लेकिन हिन्दुओंके ह्रासका मुझे कोई सबूत नहीं मिला है। फिर भी मुझे इस कथनपर विश्वास करना चाहिए कि हम शारीरिक रूपमें दुर्बल होते जा रहे हैं। इसके कारण स्पष्ट हैं। हमारी बढ़ती हुई गरीबी तथा बाल-विवाह इस ह्रासके दो बड़े कारण हैं। एकका निराकरण चरखेसे किया जा सकता है, तथा दूसरेका व्यक्तियों द्वारा अपने लड़कों और लड़कियोंके विवाह तबतक न करनेके दृढ़ निश्चयसे जबतक उनकी उम्र १६ वर्षसे अधिक तथा २० वर्षके लगभग न हो जाये। विवाह जितनी देरीसे किया जाये, उतना ही अच्छा है। मैं तो इस विचारका हूँ कि चाहे कितना ही बड़ा खतरा क्यों न उठाना पड़े, लड़कों या लड़कियोंका विवाह तबतक न किया जाना चाहिए जबतक वे खासी बड़ी आयुके और गृहस्थीका बोझा उठाने योग्य तथा पूर्ण स्वस्थ न हों। इसका उपाय यह है कि जो लोग सुधारकी आवश्यकता समझते हैं, वे स्वयं इस विचारपर अमल शुरू करें तथा अपने पड़ोसियोंको वैसा करने के लिए समझायें-बुझायें। जो लोग सुधार करना चाहते हैं तथा खतरेकी सम्भावना कमसे-कम करना चाहते हैं उन्हें अपने बच्चोंको, वे आज जैसे वातावरणमें रहते हैं उससे अधिक स्वस्थ तथा शुद्ध वातावरणमें रखना चाहिए।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २-७-१९२५
 

२०२. मेरी अक्षमता

यदि मैं सहायताके अभिलाषी हर व्यक्तिको उसकी इच्छानुसार सन्तुष्ट कर पाता तो मेरे गर्वका ठिकाना न रहता। पर मेरी नितान्त अक्षमताका यह नमूना लीजिए :

यदि आप मुसलमानोंसे गोवध बन्द कराके गोरक्षा नहीं कर सकते तो फिर आपका नेतापन और महात्मापन किस मर्जकी दवा है? जरा विचारिये तो, अलवरके अत्याचारोंके सम्बन्धमें आप किस तरह जान-बूझकर चुप्पी साधे हुए हैं; और पण्डित मालवीयजीको निजाम सरकारने अपनी रियासतमें आनसे रोक कर उनका जो अपमान किया है उसके सम्बन्धमें आपकी चुप्पी तो अक्षम्य ही है। पण्डित मालवीयजीको आप अपना आदरणीय बड़ा भाई कहनेमें गौरव अनुभव करते हैं, उन्हें पहले दरजेका लोकसेवक मानते हैं और खुद आप ही ने उन्हें मुसलमानोंके प्रति किसी प्रकारका वैरभाव रखनेके दोषसे मुक्त बताया है।

एकने नहीं अनकोंने यही बातें कहीं हैं। पत्रकी यह पहली फटकार प्राप्त फटकारोंमें आखिरी है और यह मेरे लिए कहावतका 'अन्तिम तिनका' साबित हुई है। मेरे सामने एक तार रखा हुआ है, जिसमें कहा गया है कि मैं मुसलमानोंसे अनुरोध करूँ कि वे आगामी बकरीदपर गायकी कुर्बानी न करें। मैंने सोचा कि यही समय है कि मैं लोगों को कमसे-कम अपनी खामोशीका कारण तो बतला दूँ। पण्डितजी