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मेरी अक्षमता

मन्वन्तरका एक अणु-मात्र है। 'गीता' में भगवान कृष्णने यह कहकर कि हमारे करोड़ों दिन ब्रह्माके सिर्फ एक दिनके बराबर हैं, इसी भावको प्रकट किया है।[१] इसलिए हमें चाहिए कि हम अधीर न हों और अपनी कमजोरीके कारण यह न मान बैठें कि अहिंसा दिमागकी कमजोरीका लक्षण है। ऐसा नहीं है।

पर अब मेरा अधिक लिखना जरूरी नहीं है। अब पाठक समझ गये होंगे कि मैं अलवर के विषयमें क्यों चुप था। मेरे पास ऐसे तथ्य भी नहीं थे कि मैं लिखता। कुछ मेरी किसी बात या लेखपर निजाम साहबकी तरह अलवरके महाराजा भी तिरस्कारपूर्ण भावसे हँस सकते हैं। अबतक जो बातें प्रकाशित हुई हैं वे यदि सच हैं तो उन्हें घोरतम डायरशाही ही समझना चाहिए। पर मैं जानता हूँ कि फिलहाल मेरे पास इसका कोई इलाज नहीं है। इन बड़े-बड़े आरोपोंके सम्बन्धमें पर्याप्त रूपसे सन्तोषदायक सार्वजनिक जाँच करानेके निमित्त पत्रकार लोग जो उद्योग कर रहे हैं उसे मैं आदरकी दृष्टिसे देखता हूँ। मैं देख रहा हूँ कि पण्डितजीकी राजनीतिक पटुता धीरे-धीरे, चुपचाप अपना रास्ता बना ही रही है। तब फिर मुझे चिंतित होनेकी क्या आवश्यकता है? जो सज्जन मेरे पास नुस्खोंके लिए आते हैं, वे इस बातको जान लें कि मैं कोई अमोघ औषधि बाँटनेवाला कविराज नहीं हूँ और न मेरे पास कोई बड़ा औषध-भण्डार ही है। मैं तो टटोल-टटोलकर चलनेवाला एक विशेषज्ञ हूँ और मेरी छोटी-सी जेबमें मुश्किलसे दो रसायन हैं जो एक-दूसरेसे भिन्न भी नहीं हैं। और वह विशेषज्ञ फिलहाल इन दोषोंको दूर करनेकी अपनी सामर्थ्यहीनता स्वीकार करता है।

गो-प्रेमियोंसे तो मैंने पहलेसे ही कह रखा है कि अब मैं हिन्दुओं और मुसलमानोंपर अपना प्रभाव माननेका दावा नहीं करता जैसा कि कुछ समय पहले करता था। जबतक मैं उस शक्तिको पुनः प्राप्त न कर लूँ, गोमाता अपने इस बच्चेको माफ कर देगी। मैं अपनेको उसका विनम्र बच्चा ही मानता हूँ। उसके प्राणके साथ मेरा प्राण सम्बद्ध है। वह जानती है कि मैं उसके साथ विश्वासघात नहीं कर सकता। यदि उसके दूसरे भक्त नहीं समझते तो कमसे-कम वह मेरी अक्षमताको अवश्य ही समझती है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २-७-१९२५
  1. सहस्रयुगपर्यन्तमहद् ब्रह्मणो विदुः।
    रात्रिं युगसहस्रान्तां तेऽहोरात्रविदो जनाः॥ ८।१७