पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 27.pdf/३६८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

२०३. टिप्पणियाँ

अखिल भारतीय देशबन्धु स्मारक

मुझसे कहा गया है कि जिस तरह मैंने बंगालके मित्रोंकी सलाहसे अखिल बंगाल देशबन्धु स्मारकका श्रीगणेश किया है उसी तरह मैं उनके अखिल भारतीय देशबन्धु स्मारकका भी सूत्रपात करूँ। मैं पाठकोंको यकीन दिलाता हूँ कि यह बात मेरे ध्यानके बाहर बिलकुल नहीं रही है। मैं अपने उन मित्रोंसे, जो यहाँ मेरे पास हैं, सलाह मशविरा कर रहा हूँ। पर अभीतक हम उसका कोई सूत्र नहीं बना पाये हैं। अखिल बंगाल स्मारकके सम्बन्धमें निर्णय करनेमें कोई कठिनाई नहीं हुई थी। देशबन्धु न्यासपत्रने हमारे लिए ध्रुवतारेका काम दिया था। परन्तु अखिल भारतीय स्मारक बनाना इतना आसान नहीं है। उसमें देरी होना अनिवार्य है, किन्तु सम्भवतः इस अंकके प्रकाशित होनेतक कोई निर्णय हो चुकेगा। फिलहाल मैं हरएक मनुष्यको यह विश्वास दिलाता हूँ कि इस सम्बन्धमें घोषणा करनेमें अनावश्यक विलम्ब न किया जायेगा। मुझे इसमें रत्ती-भर शक नहीं कि देशबन्धुका अखिल भारतीय स्मारक अवश्य बनाया जाना चाहिए। देशके कोने-कोनेसे जो शोकसन्देश आये हैं वे देशबन्धुकी सार्वत्रिक लोकप्रियता अत्यन्त स्पष्ट प्रमाण हैं।

एक 'क्रान्तिकारी'का पत्र

श्रीमती बासन्ती देवीने मुझे किसी क्रान्तिकारीका भेजा हुआ एक गुमनाम पत्र लाकर दिया है। उससे मैं यह अंश देता हूँ :

इस समय जब मैं आपको यह पत्र लिखनेका प्रयत्न कर रहा हूँ मेरी आँखोंसे आँसू गिर रहे हैं और उनसे मेरी दृष्टि धुँधली हो रही है। आपसे मिलनेके लिए मैंने १४८ नम्बर कोठीमें जानेका प्रयत्न किया था, किन्तु मैं आपके सामने खड़ा होनेका साहस ही संचय नहीं कर सका। वहाँका दृश्य तो हृदयविदारक है।
देशबन्धुको मृत्युसे एक महान् पुरुष, शायद देशका महानतम पुरुष, उठ गया है। अब उनकी जगह लेनेवाला कोई नहीं रहा। उन्होंने जब अपनी फलती-फूलती वकालत और शानदार आमदनी छोड़ी तब तो उनको बहुत लोग जान गये थे; लेकिन मैं तो उन्हें उससे भी बहुत पहले से जानता था——तबसे जब वे अलीपुर काण्ड सम्बन्धी मुकदमेमें श्री अरविंद घोषकी पैरवी करनेके लिए मानो किसी एकान्त स्थानमें से निकल आये थे। मैं उनसे तभीसे प्रेम करने लगा था। मैं उनका अत्यन्त आदर करता था और उनका प्रशंसक तथा भक्त था। वे भी, यद्यपि हम क्रान्तिकारियोंसे राजनीतिक बातोंमें सहमत नहीं थे तथापि हमें सदा