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अपने हृदयमें स्थान देते थे। मेरे यह कहनेका आधार यह है कि मैं उन लोगोंमें से हूँ जो बंग-भंगके दिनोंमें 'अराजकतावादी' कहे जाते थे और जो अब भी 'क्रान्तिकारी' कहे जाते हैं; यद्यपि उनके लिए इन दोनों ही विशेषणोंका प्रयोग करना अयथार्थ है। वे जानते थे कि हमारे सम्बन्धमें बहुत भ्रान्ति है, हमें गलत रूपमें पेश किया जाता है और हम बहुत बदनाम किये जाते हैं, इसलिए कि हम अपने देशकी, जो हम सभीकी मातृभूमि है, स्वतन्त्रतासे प्रेम करते हैं। वे हम सभीसे भाईकी तरह प्यार करते थे और हमें सदा ठीक रास्तेपर चलानेका प्रयत्न करते थे। आज हमें उनका वियोग बहुत दुःखद हो रहा है। हम उनकी मृत्युसे शोक विह्वल हो रहे हैं, क्योंकि हम जानते हैं कि आज देशमें कोई ऐसा मनुष्य नहीं रहा जिससे हम संकटके समयमें सहायता माँग सकें।
नेता आयेंगे और चले जायेंगे; किन्तु देशबन्धु दास अब कभी पैदा न होंगे। वे लोगोंमें आशा और स्फूर्ति भरते थे। वे राष्ट्रके पूज्य थे। वस्तुतः हम उनसे सदा ही सहायता और मार्गदर्शन ले सकते थे और वे जानते थे कि वे हमसे चाहे जो सेवा ले सकते हैं; इतना ही नहीं, बल्कि हम उनके निर्देशपर अपने प्राण भी दे सकते हैं। मेरी प्यारी बहन, मैं अब आपको यह विश्वास दिलाता हूँ कि हम आपकी हर तरह की सेवाके लिए, बल्कि आपकी खातिर प्राणतक देनेके लिए तत्पर हैं और सदा रहेंगे।

जिस अंशको मैंने छोड़ दिया है उसमें लेखकने फिर सहानुभूतिका आश्वासन दिया है। यह पत्र देशबन्धुके क्रान्तिकारी——हलचल सम्बन्धी विचारोंका स्वयंस्फूर्त प्रमाण है। बंगालके युवकोंके हृदयपर उनके अधिकारका कारण यह है कि उनके दोषोंके रहते हुए भी वे एक पिताकी तरह उनकी चिन्ता रखते थे। वे उन्हें इसलिए प्रेम नहीं करते थे कि वे उनके तरीकोंको पसन्द करते थे, बल्कि इसलिए कि वे उन तरीकोंको उनसे छुड़वाना चाहते थे। क्या वे लोग जो कि उनके जीते-जी उनकी बात नहीं मानते थे, उनकी आत्माकी इस आवाजको सुनेंगे——'भारतकी मुक्तिका मार्ग हिंसा नहीं है?' क्या वे अपने विचारोंकी अपेक्षा उनके परिपक्व निर्णयपर विश्वास करेंगे?

एक गलती?

हमें मन्त्री जिला कांग्रेस कमेटी, पबनाका यह पत्र मिला है।[१]

मैं पत्रको पसन्द करता हूँ क्योंकि उसमें मुझसे यह अपेक्षा की गई है कि मैं जो-कुछ कहूँ या लिखूँ वह अधिकसे-अधिक शुद्ध तथा पूर्णतः निष्पक्ष हो। जहाँतक

२७–२२
  1. यहाँ नहीं दिया गया है। इसमें गांधीजीका ध्यान "खादी प्रतिष्ठान", ४-६-१९२५ के शीर्षकसे छपे लेखकी एक भूलकी ओर खींचा गया था। लेखमें गांधीजीने पबनाके सत्संग आश्रमके सम्बन्धमें लिखा था कि वह कोमिलाके अभय आश्रमके ढंगका खादी उत्पादन केन्द्र है। पत्रलेखकने लिखा था कि आश्रममें खादीका काम बिलकुल नहीं किया जाता और वह वस्तुतः विदेशी वस्तुकी बिक्रीमें सहायता देता है।