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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भी इन्सानके लिए सम्भव हो सकता है मैं इस अपेक्षाके अनुरूप कार्य करनेके लिए उत्सुक रहता हूँ। लेकिन पूरी सावधानी रखनेके बावजूद मैं कुछ लोगोंके प्रति अन्याय तथा कुछ लोगोंके प्रति अनुचित रूपसे पक्षपात कर सकता हूँ। अन्ततः तो दोनों ही अवस्थाओंमें अन्याय होता है। यह भी सम्भव है कि उस व्यक्ति अथवा संस्थाकी, जिसकी अनुचित रूपसे प्रशंसा की जाती है उस व्यक्ति अथवा संस्थासे अधिक हानि हो जिसकी अनुचित रूपसे निन्दा की जाती है। लेकिन इस मामलेमें मैं अत्यन्त सचेत रहा हूँ तथा मन्त्रीकी कही लगभग प्रत्येक बात कभी सत्य रही हो, पर वह उस समय सत्य नहीं थी जब मैंने यह लेख लिखा था। मैं उक्त संस्थाओंके गुणोंकी तुलनात्मक जाँच नहीं कर रहा था और न उनके हिसाब-किताबकी ही तुलना कर रहा था। मैंने तो केवल यही कहा था कि यह लेख लिखते समय खादी उत्पादक संस्थाओंकी संख्या उतनी थी और मैंने उनका निरीक्षण किया था। मैंने इनमें 'सत्संग आश्रम' को भी सम्मिलित कर लिया, यद्यपि वह इस प्रवृत्तिमें अभी हालमें ही सम्मिलित हुआ है। मैं जब आश्रममें गया तब मैंने वहाँ ४० से अधिक चरखे चलते देखे थे। सूत कातनेवालोंमें संस्थापककी पत्नी और उनके रिश्तेदार भी थे। मुझे वहाँपर बुनी हुई खादी भी दिखाई गई थी; लेकिन इस सबके अलावा देशबन्धुने, जिनके कहनेपर मैं आश्रम देखने गया था, मुझे कहा था कि आश्रमके संस्थापकने निश्चय किया है कि सूत कातना तथा खादी बुनना इसका एक मुख्य कार्य रहेगा। आश्रमके प्रबन्धकने, जिसने मुझे आश्रम दिखाया था, उनके उस कथनकी पुष्टि की थी। यदि मैं इस सारे सबूतके बाद भी आश्रमको खादीके उत्पादन केन्द्रोंमें शामिल न करता तो मैं अन्याय करता। मैं यह मानता हूँ कि इस समय सत्संग आश्रम और अभय आश्रमका कोई मुकाबला नहीं किया जा सकता। अभय आश्रम अधिक नहीं तो उतना ही पुराना है जितना पुराना खादी प्रतिष्ठान और उसकी स्थापना मुख्य रूपसे खादी तथा चरखेके प्रचारके लिए ही की गई थी। इसका उत्पादन खादी प्रतिष्ठानसे कुछ ही कम है तथा उसकी शाखाएँ कई जगह हैं। लेकिन इस लेखको लिखनेमें मेरा हेतु उनके सापेक्ष गुणोंको जाँचना न था; बल्कि जनताके ध्यानमें यह बात लाना था कि बंगालमें खादीके प्रचारकी सम्भावना कितनी है तथा इसके लिए मुख्य नमूनेकी खादी संस्था कौन-सी है। यदि यह सत्य है कि पबनामें सत्संग आश्रमके तत्त्वावधानमें विदेशी वस्त्रोंकी बिक्रीके लिए एक गोदाम चलाया जाता है तो मुझे उससे निश्चय ही दुःख होगा।

क्रान्तिकारी बननके लिए प्रयत्नशील

आपने जो-कुछ लिखा है वह इतना तात्त्विक और जटिल है कि वह मेरी समझमें नहीं आ सकता। अतः हमें फिलहाल मान लेना चाहिए कि हममें मतभेद है और जबतक आप मुझे मेरी यात्रामें कहीं मिल नहीं जाते तबतक हमें एक-दूसरेके लिए परमात्मासे सुबुद्धि देनेकी प्रार्थना करनी चाहिए। आपने सूत कातनेके साथ-साथ रुई धुननेका जो विचार किया है वह मुझे ठीक जँचता है। मैं आशा करता हूँ कि आप चरखे और धुनकीकी गुप्त शक्तियोंकी खोज कर सकेंगे। आपमें सूत कातनेकी जैसी धुन है वैसी धुन आप अपने आसपासके लोगोंमें पैदा करनेका प्रयत्न कर सकते