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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नहीं करते; और जब हम अपनी नासमझीमें चरखा लेकर उनके घरों में जाते हैं तो वे हमपर मुस्कराते हैं, अविश्वास भरी होती है उनकी वह मुस्कराहट। वे यह नहीं कहते कि आपके इस उपकरणके बारेमें हम कुछ नहीं समझते। किन्तु चूंकि हम नहीं जानते कि चरखेका गूढ़ अर्थ या आशय क्या है और ग्रामीण लोग इसकी खूबीको, संजीवनी प्रदान करनेवाले इस चरखेके सौन्दर्यको भूल गये हैं, तब वे इसपर सहज ही विश्वास नहीं कर पाते। यदि आप चाहते हैं कि वे इस घरेलू धन्धको सहज विश्वासके साथ अपनायें तो आपके लिए आवश्यक है कि आप स्वयं चरखा चलायें। और यह बात याद रखें कि जबतक आप स्वयं चरखा नहीं चलायेंगे तबतक आप इसमें आवश्यक सुधार नहीं कर सकेंगे, और जबतक आप इसमें आवश्यक सुधार नहीं करेंगे तबतक आप भारतके इस नष्टप्राय उद्योगको पुनःस्थापना नहीं कर सकेंगे। अभीतक संसार- का कोई भी कृषिप्रधान देश ऐसा नहीं है जिसने कृषिके साथ कोई अनुपूरक उद्योग न रखा हो। मैं प्रत्येक भारतीयको, चाहे वह कितना ही प्रसिद्ध अर्थशास्त्री क्यों न हो, चुनौती देता हूँ कि वह भारतके करोड़ों लोगोंके लिए जो १९०० मील लम्बे तथा १५०० मील चौड़े तथा ७ लाख गाँवोंमें — जिनमें से बहुत-से गाँव रेलसे बहुत दूर हैं — विखरे हुए हैं, कोई अन्य कारगर अनुपूरक उद्योग बताये। मैं किसी भी व्यक्तिको चुनौती देता हूँ कि वह किसी अन्य कारगर अनुपूरक उद्योगका प्रस्ताव रखे या सुझाये। किन्तु जबतक इसकी जगह ऐसा दूसरा कारगर उद्योग आपके सामने नहीं रखा जाता, तबतक आप अपना समय बेकार न खोयें, भारतकी गरीब पददलित मानवताको आधा घंटा समय देनेसे गुरेज न करें। मैं आपसे आधा घंटे की माँग करता हूँ, कांग्रेस आधा घंटे की मांग करती है। तब यदि आप चरखेको अपनाते है तो उसके उत्पादनका क्या होगा? चरखेकी आवश्यकता क्यों है ? इसलिए कि हम मैचेस्टर या जापानके बने कपड़े नहीं चाहते, न हम बम्बई या अहमदाबादमें बने कपड़े ही चाहते हैं। इन कपड़ोंने बंग-भंगके समय कोई मदद नहीं की थी। किन्तु हम चाहते हैं सुन्दर खद्दर, जो हमारे अपने गाँवके घरोंमें बनता है और जो सदैव हमारी मदद करता है। हम चाहते हैं कि हमारे ग्रामीण समृद्ध होकर मुस्करायें। हम चाहते हैं कि खुलनाके लोगोंको यदि फिरसे दुभिक्षका सामना करना पड़े तो वे समझ लें कि उन्हें डॉ०. राय-जैसे किसी व्यक्ति द्वारा भीखमें दिये गये चावलोंपर नहीं रहना है, बल्कि मैं चाहता हूँ कि वे अनुभव करें कि उन्हें किसी रायकी सहायता- की भी आवश्यकता नहीं, क्योंकि उनके पास सहारेके लिए चरखा है। जब उनके हाथमें आजीविकाका एक उपकरण तैयार है, तब उन्हें भिखारी नहीं बनना चाहिए। यह उपकरण दुर्भिक्षके विरुद्ध गारंटी, स्थायी गारंटी होगी। इसीलिए तो मैं आपसे कहता हूँ कि आप चरखे और खद्दरको अपनायें। यही वह चीज है जिसके लिए मैं बंगाल आया हूँ।

आज मैं बंगाल या भारतकी राजनीतिमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहता। ऐसे व्यक्ति मौजूद ही है जो राजनीतिमें पर्याप्त रूपसे समर्थ हैं। मैं तो अपनेको चरखा- विशेषज्ञ, खद्दर-विशेषज्ञ समझता हूँ। मेरा विश्वास है कि मुझे प्रत्येक स्त्री और पुरुष-