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हैं। यदि वह प्रयत्न सफल हो जाये और वह सफल हो सकता है और जो क्रान्तिकारी बन चुके हैं या बननेवाले हैं या उसके लिए प्रयत्नशील हैं, वे अपनी सर्वमान्य प्रतिभा और शक्तिको इस महान् कार्यमें लगा दें तो उन्हें पता चलेगा कि इस देशकी मुक्तिके लिए रक्तमय क्रान्तिको आवश्यकता नहीं है। मेरे ये मित्र मुझे चरखेको गुंजित करनेमें सहायता दें, वे ग्रामीणोंको कार्यरत और सुखी बनानेमें मेरा हाथ बँटायें और यदि हम तब भी अंग्रेजोंको न्यायके कठघरेमें खड़ा न कर सकें तो वे मेरी आतिशयिक दुर्बलताके उन क्षणोंमें मुझे घर दबा सकते हैं और सम्भवतः अपने मतमें दीक्षित भी कर सकते हैं। उस अवस्थामें वे मुझसे अन्य मत-परिवर्तितोंकी तरह हिंसात्मक प्रवृत्तियोंमें उनसे भी आगे निकलनेकी अपेक्षा कर सकते हैं।

अस्पृश्यताके सम्बन्धमें एक प्राचीन मत

जब मैं शान्तिनिकेतनमें था, श्री एन्ड्र्यूजने मुझे तमिलके यशस्वी कवि वेमनाका अस्पृश्यतापर निम्नलिखित उद्धरण दिया था :

किताब–२

१३५. उसको परिया (पंचम) न मानो जो जन्मतः परिया है; जो अपनी प्रतिज्ञा भंग करता है वह उससे भी पतित है। जो परियाको धिक्कारता है, वह उससे भी बुरा है।
१५६. तुम शूद्रको देखते हो तो उसे गालियाँ क्यों देते हो? यह केवल असभ्य भाषा है। यह आत्मा जो परियामें बोलता है, किस जातिका है?

किताब–३

१११. "वे चिल्लाते हैं: तू अपवित्र तथा अस्वच्छ है, मुझे मत छू!" अपवित्रताकी क्या सीमाएँ हैं? इसका स्रोत क्या है? सभी मानव-शरीर समान रूपसे अस्वच्छ हैं, अपवित्रता तो शरीरमें हमारे जन्मके साथ ही पैदा होती है।
१६२. जो जन्मतः शूद्र हैं तथा फिर भी शूद्रोंको गालियाँ देते हैं; जो अपनेको द्विज मानते हैं तथा अपनी पदवीमें विश्वास करते हैं; यदि वे फिर भी अपने मनको वशमें नहीं रख सकते तो वे शूद्रोंसे भी नीच हैं।
१६४. यदि किसी मनुष्यके हृदयमें अभीतक परियाके संस्कार भरे हैं और वह फिर भी परिया लोगोंसे घृणा करता है तो वह समस्त शुभ संस्कारोंसे हीन होनेपर भी द्विज कैसे हो सकता है?
२१७. यदि हम इस सृष्टिको ध्यानपूर्वक देखें और जाँचें तो हम देखेंगे कि उसमें सभी वर्ण समान उत्पन्न हुए हैं। तभी सब बराबर हैं; निश्चय ही सभी मनुष्य भाई-भाई हैं।
२२३. पृथ्वीपर उस आदमीसे अधिक अधम दूसरा कोई आदमी नहीं है जो दूसरोंको शूद्र कहकर उनसे घृणा करता है। वह बादमें नरक जायेगा।