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देशबन्धु-स्मारक कोष

जूनके अन्ततक पूरी रकम जमा नहीं कर पाये, बंगालको दोषी नहीं ठहराती। सम्भावना थी, लेकिन सम्भावना-भर ही थी कि हमारे पासके बचे हुए आठ दिनोंमें चन्दा पूरा इकट्ठा कर लिया जाता। इसकी सफलताके लिए सर्वांगपूर्ण संगठन अथवा योग्यता और थोड़े-से लोगोंमें पूरी रकम उगाहनेकी प्रबल इच्छा, यही बातें जरूरी थीं। मैं निःसंकोच कह सकता हूँ कि मैं जहाँ-कहीं भी गया हूँ, मैंने देनेकी इच्छा पाई है, लेकिन व्यापारमें बहुत मन्दी आ जानेके कारण बड़ी रकमें देनेकी क्षमताका अभाव है। और यह भी स्पष्ट रूपसे स्वीकार कर लेना चाहिए कि भारतमें कहीं भी हम इतने संगठित नहीं हो पाये हैं कि थोड़े-से समयमें ही छोटी-छोटी रकमें देनेवालों तक पहुँच सकें। यह देशबन्धुकी स्मृतिके प्रति श्रद्धाका द्योतक है कि जैसा-तैसा संगठन जिसे कि समिति खड़ाकर पाई है, उसके जरिये भी छोटी रकमें इस तरह आ रही हैं। कमसे-कम ६ कार्यकर्त्ता तो रुपये प्राप्त करनेमें सुबहसे रातके दस बजेतक और इससे भी देरतक जुटे रहते हैं। उन क्लर्कोंकी सूचीका इसमें उल्लेख नहीं किया गया है जिन्हें सर राजेन्द्रनाथने चन्दे प्राप्त करने और आने, पैसे और धेले देनेवालोंके नामोंकी बहुत लम्बी सूचियोंकी नकल करनेके काममें लगा रखा है। इसलिए मैं अपने मनमें चन्दोंकी वसूलीके बारेमें किसी प्रकारसे शंकित हुए बिना अपना बंगालका शेष दौरा खतम करनेका काम शुरू करूँगा। परन्तु मैं इस दौरेके कार्यक्रममें उल्लिखित स्थानोंमें निमन्त्रित करनेवाले सज्जनोंको इस बातसे भी अवगत कराना चाहूँगा कि दौरेमें मेरा मुख्य कार्य देशबन्धुका जीवन्त सन्देश सुनाना और स्मारकके लिए चन्दा इकट्ठा करना होगा। मैं आशा करता हूँ कि वे विभिन्न स्थानोंमें मेरे जानेका कार्यक्रम इस बातको नजरमें रखते हुए बतायेंगे कि अधिकसे-अधिक रकम जमा की जा सके। मेरा विश्वास है कि वे स्वागत-प्रबन्धोंपर अधिक धन खर्च नहीं करेंगे। निवेदन है कि किसी प्रकारकी सजावट न की जाये और स्वागतके लिए जमा रकमोंको यथासम्भव अधिकसे-अधिक बचाया जाये और वह धन स्मारक कोषमें दे दिया जाये, जैसा कि उत्तरी कलकत्तामें पहलेसे ही किया जा रहा है। मैं यहाँपर इस बातका कृतज्ञतापूर्वक उल्लेख करना चाहता हूँ कि बंगालके सभी हिस्सोंसे, और भारतके अन्य उन सभी भागोंसे जहाँ बंगाली जा बसे हैं, मनीऑर्डर धड़ाधड़ आ रहे हैं और अनेक रकमें तार द्वारा प्राप्त हो रही हैं।

मैं यह भी बता दूँ कि जो लोग १४८, रसा रोडवर फिलहाल चन्देकी रकमें प्राप्त कर रहे हैं, मेरी कुछ दिनोंकी अनुपस्थितिमें, जो आगामी शनिवारके तीसरे पहरसे शुरू होकर आनेवाले बुधवारतक जारी रहेगी, अपना काम जारी रखेंगे। मैं इसी माह ही ९ तारीखको बृहस्पतिवारको——कलकत्ता लौटनेकी आशा करता हूँ और उसी दिन सिराजगंज तथा अन्य स्थानोंके लिए चल दूँगा। वहाँसे फिर रविवार बारह तारीखको सुबह लौटूँगा।

[अंग्रेजीसे]
अमृतबाजार पत्रिका, २-७-१९२५