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२०६. हिन्दुओंको सलाह[१]

कलकत्ता
२ जुलाई, १९२५

उन हिन्दू बस्तियोंमें जहाँ गांधीजीने हिन्दुओंको सम्बोधित किया मौलाना आजाद भी मौजूद थे। श्री गांधीने कहा कि आप लोग लाठियाँ फेंक दें, हृदयसे वैरभाव निकालकर उसे स्वच्छ बनायें। आप लोगोंने मुसलमान भाइयोंको मारा-पीटा सो बुरा किया है। मुझे खबर मिली है कि हिन्दुओंकी आँखोंके सामने कोई कुर्बानी नहीं की गई थी और यदि कुर्बानी की भी गई थी तो हिन्दुओंको मनुष्योंकी हत्या करनेका कोई अधिकार नहीं था। जिस प्रकार हिन्दु-शास्त्रोंका आदेश है कि गोरक्षा की जाये, उसी प्रकार यह भी आदेश है कि गोरक्षाकी खातिर मानवोंकी रक्षा की जाये। उन्हें मनुष्योंके प्राण लेनेका कोई हक नहीं है। गोहत्याकी अपेक्षा मानवोंकी हत्या करना अधिक बड़ा अपराध है। यदि हिन्दू धर्मका यह अर्थ है कि किसी गलत कामको उससे भी बड़ा अपराध करके सही बनाया जाये तो मैं ऐसे हिन्दू-धर्मका अनुयायी नहीं हूँ। श्री गांधीने आगे कहा :

यदि आपने अपराध किया है तो मैं आपकी मदद करने नहीं आया हूँ। मैं अपराधीसे कहूँगा कि वह आगे आये और कहे : 'मैंने मनुष्योंको जानसे मार दिया है या उन्हें जख्मी किया है।' वह पुलिसके समक्ष अपना अपराध स्वीकार करे और जेल जाये या सूलीपर चढ़े।

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, ३-७-१९२५

२०७. वक्तव्य : एसोसिएटेड प्रेस ऑफ इंडियाको

कलकत्ता
२ जुलाई, १९२५

शामके करीब चार बजे जब मैं स्मारकके हस्ताक्षरकर्ताओंकी सभामें था, श्री जे॰ एम॰ सेनगुप्तने सभाको सूचित किया कि एक आदमी यह सूचना लाया है कि खिदरपुर गोदीकी कुली बस्तीमें भीषण दंगे शुरू हो गये हैं। खबर लानेवाला आदमी बाहर खड़ा हुआ है। हमने तत्काल उस आदमीको अन्दर आनेको कहा और उसकी बात सुनकर मैंने श्री सेनगुप्तको सुझाव दिया कि वे टेलीफोन करके पता लगायें कि वास्तवमें मामला क्या है। अस्तु उन्होंने मोटरसे स्वयं वहाँ जाकर स्थितिका पता

  1. बकरोदके मौकेपर कलकत्तेमें हुए दंगोंके अवसरपर। देखिए अगला शीर्षक भी।