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भाषण : खड़गपुरकी सार्वजनिक सभामें

मुसलमानोंको चोट पहुँचाई थी और वे कमसे-कम एक मौतके लिए, जिसका अब मुझे निश्चित पता चल गया है, जिम्मेदार थे। 'एसोसिएटेड प्रेस' के प्रतिनिधिने मुझे जो खबर भेजी है उसके अनुसार अस्पताल भेजे गये हिन्दुओंमें से एक भी जख्मी नहीं था। बिना जख्मी हुए लोगोंको अस्पताल भेजना बहुत ही भद्दी और बेजा बात है। मैं तो आशा करता हूँ कि अनाचार करनेवाले हिन्दू अपनेको अधिकारियोंके हवाले कर देंगे।

[अंग्रेजीसे]
अमृतबाजार पत्रिका, ३-७-१९२५
 

२०८. भाषण : खड़गपुरकी सार्वजनिक सभामें

४ जुलाई १९२५

महात्माजी इंडियन इंस्टीट्यूटसे इंडियन रिक्रिएशन ग्राउंडमें गये। वहाँ करीब २०,००० लोग एकत्र थे। वे सभी जमीनपर बैठे थे। बंगाल नागपुर रेलवेके बहुत-से यूरोपीय अधिकारी भी सभामें उपस्थित थे और वे उत्सुकतासे महात्माजीको देख रहे थे। महात्माजीने हिन्दीमें भाषण दिया।[१] उन्होंने बकरीदके दिन खिदरपुरमें हुए खेदजनक हिन्दू-मुस्लिम दंगेका उल्लेख करते हुए कहा कि इसमें पूरी तरहसे हिन्दुओंका कसूर है। उन्होंने जोरदार शब्दोंमें हिन्दू-मुस्लिम एकताकी वकालतकी और आशा व्यक्त की कि हिन्दू मुसलमानोंकी धार्मिक रस्मोंमें हस्तक्षेप नहीं करेंगे। उन्होंने मुसलमानोंसे भी प्रार्थना की कि वे अपने हिन्दू भाइयोंकी भावनाओंको अपने कार्योंसे ठेस न पहुँचायें।

अन्तमें उन्होंने देशबन्धु स्मारक कोषमें चन्दा देनेकी अपील की और वहींकी-वहीं एक बड़ी रकम इकट्ठी हो गई।

[अंग्रेजीसे]
अमृतबाजार पत्रिका, ७-७-१९२५
 
  1. मूल भाषण उपलब्ध नहीं है।