पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 27.pdf/३७८

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२०९. समस्याएँ

एक मित्र लिखते हैं :[१]

इस भाषामें सुधार करनेकी आवश्यकता है। मुझे याद नहीं पड़ता कि मैंने ऐसा कहा हो कि गलत तौरपर सत्याग्रह किये जानेमें भी चिन्ताकी बात नहीं है। गलत तौरपर की गई प्रत्येक बात अवश्य ही खतरनाक है। मैंने यह जरूर कहा है कि सत्याग्रहीके आग्रहमें गलती हो तो उसका दुःख खुद उसीको भोगना पड़ेगा और यह ठीक है। जिसके प्रति सत्याग्रह किया गया हो उसे दुःख हो तो उसका जिम्मेवार सत्याग्रही नहीं हो सकता। सत्याग्रहीका उद्देश्य प्रतिपक्षीको दुःख पहुँचाना होता ही नहीं है। प्रतिपक्षी अपने आप दुःख माने या दुखी हो तो सत्याग्रहीको उसकी चिन्ता नहीं करनी चाहिए। मैं शुद्ध भावसे उपवास करूँ और उससे मेरे साथियोंको दुःख हो तो उसे सहन कर लेना ही मेरे लिए ठीक होगा।

इस उदाहरणमें कहा गया है कि 'बापको गुस्सा आ गया था।' सत्याग्रही तो क्रोधित होता ही नहीं, अनिच्छासे हो जाये तो जबतक रोष उतर न जाये तबतक सत्याग्रही रोषका अवसर देनेवालेके विरुद्ध कोई भी कार्रवाई न करेगा। फिर बहुत विचार करनेके बाद भी उसे ऐसा लगे कि माँ-बापने जो व्यवहार किया है वह दोषयुक्त जरूर है तो उसे सुधारनेकी कोशिश करे और उसके ऐसा करते हुए, सोलहों आना विनयका पालन करते हुए भी, यदि उसके माँ-बाप आत्मघात कर लें तो सत्याग्रही इस सम्बन्धमें निःशंक रहे। माँ-बाप यदि अज्ञानवश होकर खुदकुशी करें तो उसके जिम्मेवार वे खुद हैं। माँ-बाप जब खुद ही दुःख मोल लें तो उसके लिए बेटा कैसे जिम्मेवार हो सकता है? माँ-बाप जब बेटेको पापाचरणके लिए कहें और लड़का उसके अनुसार आचरण न करे और इसके फलस्वरूप माँ-बाप आत्महत्या कर लें तो इसमें लड़केका क्या दोष? प्रह्लादने रामनाम लेनेका आग्रह किया। इससे हिरण्यकशिपु क्रुद्ध हुआ और अन्तमें उसका नाश हुआ। इसकी जिम्मेवारी प्रह्लादपर बिलकुल नहीं आती। रामने पिताके वचनका पालन किया। उसके कारण दशरथकी मृत्यु हुई। उसके दोषी राम नहीं कहे जा सकते। प्रजा दुःखसागरमें डूब रही थी, फिर भी रामने अपना हृदय कठिन करके अपनी प्रतिज्ञाका पालन किया। सत्यवतीको असीम दुःख होनेपर भी भीष्म अपनी प्रतिज्ञापर दृढ़ रहे। इसमें याद रखने लायक बात यह है कि सत्याग्रही अपना धर्म किसीके सिखानेसे नहीं सीख सकता। वह तो स्वयं स्फुरित होना चाहिए। रामने वन जानेसे पूर्व गुरुजनोंसे परामर्श नहीं किया था। यह कहनेवाले धर्माचार्य मौजूद थे कि वन जाना पाप है और न जाना पाप नहीं है फिर भी उन्होंने वन जाकर अपने धर्मका पालन किया और अपना नाम अमर किया। हमारे इस दुखी देशमें कायरता इस हदतक बढ़ गई है कि लोग बात-बात

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