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समस्याएँ

पर आत्मघात करने, अनशन करने आदिकी धमकियाँ देते हैं। ऐसी धमकियोंकी परवाह नहीं की जा सकती, चाहे हम यह भी क्यों न जानते हों कि धमकीका सच हो जाना सम्भव है। सत्याग्रही-अनशन और दुराग्रही-अनशनका भेद 'नवजीवन' में कई बार स्पष्ट कर चुका हूँ।

वही मित्र एक दूसरा उदाहरण पेश करते हैं, जो यहाँ दे रहा हूँ:[१]

पतिका धर्म है कि वह मर्यादाके अनुसार और यथाशक्ति पत्नीके रहने, खाने और पह्ननेका प्रबन्ध करे। धनी अवस्थामें पति जैसा सुखोपभोग करा सका है, वैसा गरीब होनेपर नहीं करा सकता। यदि पति अज्ञानवश आमोद-प्रमोद करे, शराब पीए और विदेशी वस्त्र पहने एवं अपनी पत्नीको भी ऐसा ही करने दे तो उचित यह है कि ज्ञान हो जानेपर वह इन बातोंको स्वयं छोड़ दे और अपनी पत्नीसे भी छुड़वा दे। यहाँ विवेकके लिए स्थान है। दुनियामें सामान्य व्यवहार यह देखा जाता है कि पत्नीको पतिके विचारके अनुकूल रहना चाहिए। परन्तु पति पत्नीसे अथवा पिता अपने पुत्र-पुत्रियोंसे कोई काम बलात् नहीं करा सकता। यदि कोई स्वयं खादी पहनना आरम्भ करनेपर अपनी पत्नीको अथवा वयस्क पुत्रों और पुत्रियोंको खादी पहननेके लिए विवश करे तो यह पाप है; परन्तु वह उनके लिए विदेशी वस्त्र खरीदनेके लिए बाध्य नहीं है। यदि यह उसके वयस्क बेटोंको उचित न लगे तो वे अलग हो सकते हैं। परन्तु पत्नीका मामला नाजुक है। पत्नी सहसा अलग नहीं हो सकती। उसमें सामान्यतः अपनी जीविकार्जन करनेकी शक्ति नहीं होती; अतः मैं ऐसे प्रसंगोंकी कल्पना कर सकता हूँ जब पत्नी समझानेसे न माने तो उसको विदेशी वस्त्र खरीद कर देना कर्त्तव्य हो जाता है। विदेशी वस्त्रका त्याग एक धर्म छोड़कर दूसरा धर्म ग्रहण करनेके समान है। पति जितनी बार अपना धर्म बदले पत्नीको भी उतनी ही बार धर्म बदलना चाहिए, यह नियम नहीं है और होना भी नहीं चाहिए। पतिको पत्नीका और पत्नीको पतिका विधर्म सहन करना चाहिए। इसलिए यदि इस स्थितिमें पति पत्नीके लिए विदेशी वस्त्र खरीदे तो उसकी धमकीसे डरकर नहीं बल्कि यह समझकर खरीदे कि पत्नीसे जबर्दस्ती नहीं करनी चाहिए। फर्ज करें कि पत्नी स्वयं विदेशी कपड़ा पहनना चाहती है, इतना ही नहीं बल्कि वह यह भी चाहती है कि उन्हें उसका पति भी पहने और यदि पति उसकी बात नहीं मानता तो वह आत्महत्या की धमकी देती है; तब पतिको चाहिए कि वह उसकी धमकीकी परवाह हरगिज न करें।

तीसरा उदाहरण इस तरह है:[२]

मेरे मनमें इस बातमें तनिक भी सन्देह नहीं है कि पिताको अपार दुःख होता हो तो भी पुत्रको उचित है कि वह अस्पृश्यता त्याग दे। यहाँ भी वैसी ही सावधानी बरतनेकी जरूरत है जैसी मैंने पहले उदाहरणमें सुझाई है। यह निष्ठुरताक बात

  1. यहाँ नहीं दिया गया है। इसमें कहा गया था कि एक स्त्रीने अपने पतिको धमकी दी है कि ५०० रुपयेका विदेशी कपड़ा खरीदकर न दोगे तो मैं आत्मवात कर लूँगी।
  2. यहाँ नहीं दिया गया है। इसमें कहा गया था कि एक पिताने अपने पुत्रको यह धमकी दी है कि यदि तुम अस्पृश्योंको स्पर्श करोगे या उनके मुहल्लेमें जाओगे तो मैं प्राण दे दूँगा।