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सोनेकी अनुमति प्राप्त थी, इससे मेरी तारोंसे वार्ता करनेकी इच्छा बहुत तीव्र हो गई थी। किन्तु मुझे तारोंकी भाषा तो आती नहीं थी, अतः मैं उनसे क्या बात कर सकता था? मुझे तारोंकी वह भाषा पुस्तकसे सीखनी चाहिए थी किन्तु वह सम्भव नहीं हो सका; क्योंकि मैं तो वहाँ दूसरा काम आरम्भ कर बैठा था। मुझे वहाँ छः वर्ष बिताने थे, इसलिए मुझे यह आशा थी कि मैंने 'उपनिषद्' आदि पढ़नेक जो निश्चय किया है वह पूरा हो जानेपर मैं इन नभवासियोंसे बात करना सीख लूँगा।

किन्तु मेरे भाग्यमें तो चित्तरंजनका निधन देखना बदा था, अतः मैं यरवदा जेलमें जी-भर कर नहीं रह सका। बीमारीके बहाने विधाताने मुझे वहाँसे बाहर ढकेल दिया और मैं ग्रह-मण्डलके ज्ञानसे वंचित रह गया। मुझे भाई शंकरलालसे ईर्ष्या होती है। वे हर रातको हाथमें पुस्तक लेकर नभचारी नक्षत्रोंकी पहचान करनेमें लग गए थे। इस विषयका अध्ययन मनोरंजक ढंगसे कैसे किया जा सकता है, इसका नमूना एक हस्तलिखित समाचारपत्रमें मेरे सम्मुख प्रस्तुत है। मैं इसे नीचे उद्धृत करता हूँ :[१]

यदि पाठकोंको इस उद्धरणमें वर्णित आनन्दका अनुभव करना हो तो जिस रातको आकाशमें बादल न हों उस रातमें वे आकाशपर दृष्टि डालें। यदि उनको ग्रहोंका ज्ञान बिलकुल न हो तो उनकी स्थिति मेरी-जैसी ही दयनीय होगी। किन्तु वे इसमें से तुरन्त निकल आएँ। वे कोई ऐसी गुजराती पुस्तक मँगाकर उसे पढ़ जाएँ, जिससे वे मनोरंजक ढंगसे खगोल विद्या सीख सकें। यदि उनको यह पूछना हो कि यह पुस्तक कहाँसे मँगाई जाए तो वे गुजरात विद्यापीठसे पूछ लें। यदि वहाँसे यह जानकारी न मिले अथवा पुस्तक उपलब्ध नहीं है, ऐसी सूचना मिले तो वे गुजरात विद्यापीठको जो चन्दा देते हैं वह उसे देना बन्द कर सकते हैं; किन्तु यदि पुस्तक मिल जाए और उन्होंने विद्यापीठको कभी चन्दा न दिया हो तो शुरू कर दें।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ५-७-१९२५
 

२११. टिप्पणियाँ

देशबन्धुकी महायात्रा

शास्त्रोंमें कहा है कि जिस प्रकार कोई गृहस्थ अपने घरके जीर्ण हो जानेपर नये गृहमें प्रवेश करता है, उसी प्रकार देहस्थ आत्मा एक देहके जीर्ण होनेपर उसका त्याग करती है, दूसरा नया तैयार करती है और उसमें रहती है। जिस तरह गृहस्थको पुराना टूटा-फूटा मकान भी सहवासके कारण छोड़ना अच्छा नहीं लगता, उसी तरह जीवको भी दीर्घ सहवासके कारण इस देहको छोड़ना अच्छा नहीं लगता, भले ही पैर फूलकर खम्भे बन गये हों, या शरीर छीज-छीजकर हड्डियोंका ढाँचा-भर रह गया हो या साँस लेना दूभर हो चुका हो। फिर भी नया घर बन जानेपर हम

  1. यहाँ उद्धृत नहीं किया गया है।