२१२. पत्र : महादेव देसाईको
[६ जुलाई, १९२५][१]
तुम्हें [जुदा होनेपर] जो दुःख हुआ, मैंने उसे तो समझ ही लिया है। क्या यही दुःख किसी दिन स्थायी नहीं हो जायेगा? अतः इस समय इतना अनिवार्य दुःख सह लो।
मुझे मोतीलालजीका तार मिला था। तुम बासन्तीदेवीसे मिल लेना। उनसे पूछकर वहींसे तार दे देना। यदि १४८ [रसा रोड] में उनकी सार-सम्भाल ठीक तरह हो सके तो वे अवश्य हमारे साथ रहें। फिर भी इस सम्बन्धमें बासन्तीदेवी जो चाहें वही करना ठीक है।
मुझे यहाँ भी तुम्हारा पत्र मिल गया है। वह चीज अबतक तो 'फॉरवर्ड' को भेज दी होगी। कभी-न-कभी तो वह छपेगी ही। उसकी नकल श्यामबाबूको भेज देना।
खड़गपुरमें ५०० रु॰ और...में[२] ५०० रुपये चन्देके मिले हैं। दूसरोंने भी रुपया देनेकी आशा तो बँधा ही दी है। यहाँ मिदनापुरमें जितना मिल जाये उतना ही ठीक। राजेन्द्र बाबू यहाँसे जुदा हो गये। वे यहाँसे पुरुलिया गये हैं।
बापूके आशीर्वाद
बासन्ती देवीसे रोज मिलना। 'यंग इंडिया' के लिए दो कालम लायक सामग्री गाड़ी में लिखी थी। यह हुआ तुम्हारे...के[३] पत्रका उत्तर।
गुजराती पत्र (एस॰ एन॰ ११४३२) की फोटो-नकलसे।