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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दो रूपोंमें देखा जा सकता है; किन्तु उनका बाह्य जीवन उनके आन्तरिक जीवनको पूर्ण बनानेमें सहायक-भर होनेका प्रयत्न था। देशबन्धु राष्ट्रको शक्तिशाली बनाकर उसे स्वतन्त्र देखना चाहते थे। जहाँतक उनके बाह्य जीवनका सम्बन्ध है वह केवल धनी और शिक्षित लोगोंके लिए था जबकि उनके आन्तरिक जीवनका अनुकरण गरीब-अमीर, शिक्षित-अशिक्षित, बालक-बालिका, युवा और वृद्ध सभी समान रूपसे कर सकते थे। अपने जीवनके अन्तिम छः या नौ महीनोंमें उन्होंने गाँवोंके पुनर्गठन तथा पुन- निर्माणके आदर्शको——जिसमें प्रत्येक आयु और सामाजिक स्तरके पुरुष और स्त्री भाग ले सकते थे——लोगोंके सम्मुख रखनेका प्रयत्न किया।

छात्रोंका ध्यान इस ओर खोंजते हुए गांधीजीने कहा कि गाँवोंमें कार्य आरम्भ करनेका सबसे उत्तम और आसान तरीका प्रत्येक घरमें चरखेको दाखिल करना है। इस सम्बन्धमें दार्जिलिंगमें मैंने उनसे लम्बी बातचीत की और हम दोनों ही इस बातपर सहमत थे। देशबन्धुने अपनी मृत्युके कुछ दिन पहले बाबू सतकौड़ीपति रायको भी यह सब सूचित किया था। यह एक बड़े दुःखकी बात है कि अपने देशवासियोंके लिए तैयार की गई अपनी उस योजनाको पूरा करनेके लिए वे आज हमारे बीच नहीं हैं। यदि आपके मनमें अपने देशबन्धुके प्रति कुछ भी प्रेम व श्रद्धा है तो आपको प्रतिदिन कमसे-कम आधा घंटा कातने, कभी विदेशी कपड़ा न पहनने और तत्परता तथा लगनसे गाँवोंके पुननिर्माणका कार्य शुरू करनेकी शपथ लेनी होगी। अन्तमें उन्होंने छात्रोंसे अपील की कि अपने माता-पितासे आज्ञा लेकर वे यथाशक्ति देशबन्धु- स्मारक कोषमें चन्दा दें। उन्होंने उनसे सोनके बटन तथा अन्य विलासिताको वस्तुएँ, अपने नित्यके खर्चसे, यहाँ तक कि दो-तीन दिन उपवास रखकर भी, पैसा बचाकर उसे कोषमें देनेको कहा। इस प्रकारका त्याग छात्रोंके लिए कोई नया नहीं है। अपने पिछले ३०-४० सालके राजनीतिक जीवनमें मुझे ऐसी सहायता बहुत बार मिली है। विशेषकर पिछले मलाबार बाढ़ सहायता-कोषमें। पर मैं आपको इस बातके लिए आगाह किये देता हूँ कि यदि आप यह त्याग स्वेच्छासे नहीं करते तो मैं एक भी पाई नहीं लूँगा। आप अपनेमें से या अपने बुजुगोंमें से किसीको अपना नेता चुन लें और उसकी मार्फत चन्दा इकट्ठा करें तथा नित्य कातने और कभी विदेशी कपड़ा इस्तेमाल न करनेकी शपथ लें।[१]

[अंग्रेजीसे]
अमतबाजार पत्रिका, ८-७-१९२५
 
  1. उस दिन बादमें गांधीजीने महिलाओंकी समामें तथा शामको सार्वजनिक सभामें गाँवोंक पुननिर्माणकी आवश्यकता, कताई, हिन्दू-मुस्लिम एकता आदि विषयोंका उल्लेख करते हुए भाषण दिये। सभाओंमें उन्हें विभिन्न संस्थाओंने मानपत्र भी भेंट किये थे।