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२१५. भाषण : बांकुड़ाकी सार्वजनिक सभामें[१]

८ जुलाई, १९२५

महात्माजीने कहा कि इस जिलेमें आकर मैंने अनिल बाबूकी विभिन्न गति-विधियों तथा लोगोंके मनपर उनके प्रभावके बारेमें सुना। अनिल बाबूके कार्यको चलाते रहनेकी दिशामें जनताको उत्साहित करते हुए गांधीजीने बताया कि वे जल्दी ही जेलसे रिहा हो जायेंगे। इसके बाद उन्होंने कहा कि मैं देशबन्धुके सन्देशका प्रचार करनेके लिए, उस दिवंगत महापुरुषने हमें त्याग, अनथक कर्मशीलता, मातृभूमिके प्रति अनन्त श्रद्धा और दीन-दुखी जनोंके प्रति प्रेमको जो शिक्षा दी, उसीको आप लोगोंके हृदयमें उतारनेके लिए जगह-जगह घूम रहा हूँ।

गांधीजीने कहा कि आप केवल चन्दा देकर अथवा अपना नाम [स्वयं सेवकोंमें] लिखाकर ही नहीं वरन् गाँवोंके पुननिर्माणके द्वारा स्वराज्य दलके कार्यको उत्तेजन दें। सबका कौंसिलोंमें प्रवेश पाना सम्भव नहीं है; पर पुनर्निर्माणका कार्य सब कर सकते हैं। जहाँतक चरखा और गाँवोंके पुनर्निर्माणका प्रश्न है, जब दार्जिलिंगमें हमारी चर्चा हुई उस समय मैं और देशबन्धु एक मत थे। जबतक गाँवोंका उत्थान नहीं किया जाता हमें स्वराज्य कैसे मिल सकता है? गाँवों और शहरोंको जोड़नेवाला एकमात्र साधन चरखा है। तमाम अकालों, बीमारियों तथा अन्य विपत्तियोंका कारण भारतकी गरीबी है। यह बात मैंने कांग्रेसके प्रारम्भिक कालमें भारतके पितामह दादाभाई नौरोजोके लेखोंसे समझ ली थी। हम उस गरीबीसे छुटकारा कैसे पा सकते हैं? चरखेको अपनानेसे आप चरखेकी सम्भावनाओंपर विचार करें। अन्तमें गांधीजीने देशबन्धु स्मारक कोषमें चन्दा देनेकी अपील की। इसपर बहुत-से रुपये-पैसे और आभूषण आने शुरू हो गये और सभा समाप्त हुई।

[अंग्रेजीसे]
अमृतबाजार पत्रिका, ११-७-१९२५
 
  1. सभामें गांधीजीको जनता, जिला बोर्ड, नगरपालिका तथा बाँकुड़ा सम्मेलनोंकी ओरसे मानपत्र भेंट किये गये थे, जिनका उत्तर उन्होंने हिन्दीमें दिया। मूल हिन्दी भाषण उपलब्ध नहीं है।