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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

स्वराज्यवादियोंके साथ एक हदतक ही चल सकते हैं। पर हो सकता है कि मैं गलतीपर होऊँ——शायद हूँ भी। [प्रसिद्ध उपन्यास-लेखक डिकिन्सके पात्र] बारकिसकी तरह मैं तो हमेशा ही राजी हूँ।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ९-७-१९२५
 

२२१. दो प्रजातियाँ नहीं

आशा है पाठक निम्न पत्रको दिलचस्पीसे पढ़ेंगे :

यह बात मेरे ध्यानमें कई बार आई है कि आपने हिन्दुओं और मुसलमानोंका उल्लेख भारतकी वो 'प्रजातियों' के रूपमें किया है। मेरी नम्र सम्मतिमें इन दो धार्मिक समुदायोंको 'प्रजातियाँ' कहना हानिकर तो है; किन्तु उनको दो 'राष्ट्र' कहनेको अपेक्षा कम हानिकर है। आपके एक मुसलमान संवाददाताने एक बार ऐसा प्रयोग किया था। (देखिए यंग इंडिया, २४-७-१९२४ पृष्ठ २४४)। सच्चाई यह है कि मुसलमान भारतीयोंमें से (मैं उन्हें इसी नामसे पुकारूँगा और जैसा वे अपने आपको पुकारनेके अभ्यस्त हैं, उस तरह उन्हें भारतीय मुसलमान नहीं कहूँगा) लगभग ९० प्रतिशत उसी 'प्रजाति' या 'प्रजातियों' के हैं जिनके हिन्दू हैं, क्योंकि उनके पुरखे भारतीय थे और भारतमें ही मुसलमान बने थे। शेष १० प्रतिशत मुसलमान भारतीयोंके रक्तमें तुर्कों, तातारों, अरबों, पठानों, ईरानियों या अबीसिनियाके लोगोंके रक्तका थोड़ा मिश्रण हो सकता है। फिर भी पीढ़ियोंतक आपसी विवाह सम्बन्धोंसे उसमें इतना भारतीय रक्त मिल गया है कि इन १० प्रतिशत लोगोंको भी प्रजातिकी दृष्टिसे बिना किसी जोखिमके ९९ प्रतिशत इसी देशकी जाति कहा जा सकता है। असलमें भारतके हिन्दू और मुसलमान दो प्रजातियोंके लोग नहीं हैं, ठीक ऐसे ही जैसे इंग्लैंडके प्रोटेस्टेंट और कैथॉलिक दो प्रजातियोंके लोग नहीं हैं। यह प्रश्न ऐसा है जिसके सम्बन्धमें इतिहास, मानव-शरीर रचना शास्त्र और नृवंश विज्ञानसे काफी सही सबूत प्राप्त किये जा सकते हैं। इसके अलावा उनके रक्तकी प्रजातीय रचना चाहे-कुछ भी हो, इस तथ्यसे इनकार नहीं किया जा सकता कि वे सभी शत-प्रतिशत अपने बापदादोंकी तरह भारतमें पैदा हुए थे, भारतमें रह रहे हैं, भारतमें मरेंगे और भारतमें ही दफनाये जायेंगे। और भारत एक देश है और इसलिए वे उसी एक राष्ट्रके लोग हैं जिसके हिन्दू। आवश्यकता केवल यह है कि वे अपने आपको भारतीय राजनीतिमें भारतीय मुसलमान नहीं, बल्कि मुसलमान भारतीय मानें।