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६. भाषण : अखिल बंगाल हिन्दू सम्मेलनमें

फरीदपुर
 
२ मई, १९२५
 

अध्यक्षका अनुरोध है कि मैं आपके सामने तीन बातोंके बारेमें अपने विचार प्रकट करूँ। पहली है हिन्दू-मुस्लिम एकता। यह एक मार्मिक प्रश्न है। मैंने इसपर बहुत अधिक विचार किया है। मैं ईश्वरसे प्रार्थना करता हूँ कि वह हमें शान्ति, जिसके हम इतने इच्छुक हैं, प्रदान करे। इस समय हिन्दू और मुसलमान आपसमें लड़ रहे हैं और दोनोंमें बड़ी कटुता पैदा हो गई है। उनमें हृदयकी एकता नहीं है। मैंने एकता स्थापित करने के लिए भरसक प्रयत्न किया; और मुझे यह स्वीकार करने में लज्जाका अनुभव नहीं होता कि मुझे उसमें सफलता नहीं मिली। मैं केवल यह चाहता था कि वे लड़ें तो पुरुषोचित ढंगसे, मर्दानगीके साथ लड़ें, न्यायालयोंकी शरणमें तो न जायें; तभी वे जान सकते हैं कि एक जाति दूसरी जातिको बिलकुल नष्ट नहीं कर सकती और न सारे भारतको हिन्दू धर्म या मुसलमान धर्म ही स्वीकार कराया जा सकता है। तब यह चिरवांछित एकता अपने-आप पैदा हो जायेगी।

अस्पृश्यताके सम्बन्धमें मेरे विचार सर्वविदित हैं; और मैं हजारों बार विभिन्न मंचोंसे उन्हें प्रकट कर चुका हूँ। मेरा विश्वास है कि जबतक हिन्दुओंमें अस्पृश्यता है तबतक उनका कुछ भी भला नहीं हो सकता। यह एक जबर्दस्त पाप है। इसके लिए धर्मकी कोई भी अनुमति नहीं है। यदि हिन्दू अपने लाखों भाइयोंको अस्पृश्य कहकर अपमानित करते हैं तो वे बड़े कैसे बन सकते हैं ? इसलिए मैं यहाँ उपस्थित प्रत्येक व्यक्तिसे अपील करता हूँ कि वे इस अस्पृश्यताके कलंकको दूर करें और दूसरोंको भी इसके लिए प्रेरित करें। अस्पृश्यता-निवारणका यह अर्थ कभी नहीं है कि वर्णाश्रम धर्मका उन्मूलन किया जाये। वह तो बड़ी ही सुन्दर और लाभप्रद वस्तु है, वह बुरी तो है ही नहीं। किन्तु मैं जानता हूँ कि आज वर्णाश्रम धर्मके नामपर बहुत-से गलत काम हो रहे हैं। उन्हें निश्चित रूपसे दूर कर देना होगा। इसका यह अर्थ भी नहीं है कि हम सबमें परस्पर रोटी-बेटीका व्यवहार हो? आपको अस्पृश्यता और वर्णाश्रम धर्मके बीचका भेद नहीं भूलना चाहिए।

चरखे और खद्दरके सम्बन्धमें मेरा कहना है कि चरखा भारतका जीवन है और मैंने इसकी तुलना सुदर्शनचक्र तथा कामधेनुसे की है। हिन्दुस्तानमें गरीबी चरखे- के विनाशके साथ शुरू हुई; इसलिए गरीबी दूर करने के लिए हमें पुनः चरखेको उसके स्थानपर स्थापित करना होगा। चरखेको हमारे घरोंमें पहला स्थान मिलना चाहिए। अपने भूखे भाइयोंकी मुक्तिके लिए आपको प्रत्येक घरमें ईश्वरके नामपर

१. अध्यक्ष आचार्य रायने गांधीजीसे प्रार्थना की कि वे देशके महत्त्वपूर्ण मौजूदा प्रश्नोंपर बोलें। गांधीजीने हिन्दी में भाषण दिया था। मूल भाषण उपलब्ध नहीं है।