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भाषण : बंगाल प्रान्तीय युवक सम्मेलनमें

प्रतिदिन आधा घंटा चरखा चलाना चाहिए। इसे सबसे पहले शिक्षित लोगोंको अप- नाना चाहिए ताकि अन्य लोग उनका अनुसरण कर सकें। सुबह जब मैंने औद्योगिक प्रदर्शनीका उद्घाटन किया तब मुझे चरखेकी बनावटमें बहुत-सी त्रुटियाँ नजर आई। वे तभी दूर हो सकती है जब शिक्षित लोग उसमें अपना दिमाग लगायें। आप जानते हैं कि सुधरे हुए चरखोंने — मेरा मतलब मैंचेस्टरकी मिलोंसे है — भारतीय जनता- में तबाही मचा दी है, इसलिए मेरी इच्छा है कि कोई भी घर बिना चरखेका नहीं रहना चाहिए। मैं आपसे अपील करता हूँ कि आप खद्दर पहनें। चार वर्ष पूर्व जब मैं ढाका गया था, मेरा हृदय ढाकाकी मलमलको देखकर दुखी हो गया था। वह अब उस विदेशी सूतसे बनती है जो इंग्लैंड या जापानसे आता है। जैसा खद्दर आपके प्रदेशमें तैयार किया जाता हो आप वैसा ही खद्दर पहनें। एक दिन एक बंगाली लड़की, जो अत्यन्त महीन सूत कात सकती थी, मेरे पास आई। उसका नाम अपर्णा देवी था। मैंने उससे मिलकर अपनेको भाग्यशाली माना । मैं बंगाली महिलाओंसे अपील करता हूँ कि वे ऐसा प्रयास करें कि अपने पतियों तथा पुत्रोंके पहननेके लिए स्वयं महीन खादी तैयार कर सकें ।

[अंग्रेजीसे]

अमृतबाजार पत्रिका, ३-५-१९२५


७. भाषण : बंगाल प्रान्तीय युवक सम्मेलनमें

२ मई, १९२५
 

अध्यक्षने महात्माजीसे प्रार्थना की कि वे वहाँ एकत्र देशके आशावादी तरुणोंसे सलाहके तौरपर कुछ कहें। महात्माजी काफी देरतक भाषण देते रहे। अपने भाषण- के दौरान उन्होंने बताया कि तरुणोंने देशके पुनरुत्थानमें क्या भाग लिया है। उन्होंने कहा कि मैं भाषणों से तंग आ गया हूँ, किन्तु मैं आप लोगोंके साथ दिल खोलकर बात करना चाहता हूँ। नवयुवकों को अपने मनसे सारे बुरे विचार निकाल बाहर कर देने चाहिए। आपके जीवनका आदर्श सेवा होना चाहिए या एक शब्दमें कहूँ तो आपके जीवनको अनिवार्य शर्त ब्रह्मचर्य होनी चाहिए। ब्रह्मचर्य केवल हिन्दू धर्मतक ही सीमित नहीं है — वास्तवमें यह सभी युगोंमें सभी धर्मोका अनिवार्य आधार रहा है। इसके बाद, उन्होंने कुछ ऐसे प्रतिभाशाली नवयुवकोंके उदाहरण दिये जिन्होंने ब्रह्मचर्यके अभावमें अपना जीवन नष्ट कर दिया और कहा कि मैं आपमें से प्रत्येकसे इस बातका आश्वासन चाहता हूँ कि आप शुद्ध जीवन बितायेंगे।

फिर उन्होंने असहयोग आन्दोलनका उल्लेख करते हुए कहा कि यह आन्दोलन और कुछ नहीं, केवल आत्मशुद्धिका आन्दोलन है। आपको मेरी सलाह यह है कि

१. जितेन्द्र मोहन राय।