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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मेरे दूधका नागा नहीं होने दिया। मुझे बासन्ती देवीके बहन-जैसे स्नेहपूर्ण सत्कारका अनुभव तो पहले भी बहुत बार हुआ था; परन्तु दार्जिलिंगमें मेरी देखभाल खुद देशबन्धुने अपने जिम्मे ली थी। और उसमें मुझे किसी किस्मकी कृत्रिमता मालूम नहीं होती थी। अतिथिसत्कार तो उनके कुलका विशिष्ट गुण है। उन्होंने अपने मुक्तहस्त अतिथि-सत्कारकी कई कथाएँ सुनाई थीं। अपरिचित जनों अथवा राजनैतिक प्रतिपक्षियोंके प्रति उनके भारी आदरभावका परिचय दार्जिलिंगमें ही मुझे मिला। हमने बंगालमें हाथकताई और खादी कार्य करनेके लिए एक योजना निश्चित की थी। श्री दासके कहनेसे सतीश बाबू, जो खादी प्रतिष्ठान चलाते हैं, इस योजनाके सम्बन्धमें सलाह करनेके लिए यहाँ बुलाये गये थे। मैंने उनसे पूछा कि आप, सतीश बाबूको कहाँ ठहराना चाहते हैं? उन्होंने कहा, 'क्यों इसी घरमें।' 'मैंने कहा, किन्तु यहाँ तो पहले ही से काफी आदमी हैं।' उन्होंने तुरन्त कहा, 'नहीं, नहीं, वे तो मेरे कमरेमें भी ठहराये जा सकते हैं।' मैं उनकी और श्रमसे क्लांत उनकी पत्नीकी बात सोच रहा था; किन्तु वे सतीश बाबूके आरामके बारेमें सोच रहे थे। उन्होंने कहा, 'इसके अलावा सतीश बाबू समझते हैं कि उनके बारेमें मेरे खयाल अच्छे नहीं हैं। उनसे मेरा परिचय बहुत ही कम है। आप जानते ही हैं, मैं अपने मित्रोंकी चिन्ता नहीं करता, क्योंकि उन्हें मेरे बारेमें गलतफहमी नहीं हो सकती। परन्तु हमें सतीश बाबूको तो जरूर यहीं ठहराना होगा।'

उन्होंने बंगालके भिन्न-भिन्न राजनैतिक दलोंके सम्बन्धमें भी बातें कीं। मैंने एक मौकेपर स्वराज्य दलपर लगाये गये घूसखोरी तथा भ्रष्टाचारके आरोपोंका जिक्र किया। मैंने उनसे यह भी कहा कि सर सुरेन्द्रनाथने मुझे बंगालसे जानेसे पहले एक बार फिर अपने घर बुलाया है। उन्होंने कहा, 'आप जरूर जायें और उन्हें ये सब बातें बतायें जो आपके और मेरे बीच हुई हैं। आप उनसे कहें कि मैं घूस और भ्रष्टाचारके तमाम आरोपोंका तीव्र खण्डन करता हूँ। अगर स्वराज्यदलपर लगाया गया एक भी आरोप सत्य सिद्ध किया जा सके तो मैं सार्वजनिक जीवनसे हट जानेके लिए तैयार हूँ। सच्ची बात तो यह है कि बंगालके राजनैतिक जीवनमें पारस्परिक ईर्ष्याद्वेष और पीठ पीछे निन्दाकी प्रवृत्ति व्याप्त हो गई है। स्वराज्यदलकी यह आकस्मिक उन्नति और सफलता कुछ लोगोंके लिए असह्य हो गई है। इसलिए मैं चाहता हूँ कि आप दलपर लगाये गये तमाम आरोपोंकी जाँच करें और अपना निश्चित निर्णय दें। मैं आपको यकीन दिलाता हूँ कि मैं अप्रामाणिकताको आपकी तरह ही अनुचित मानता हूँ। मैं जानता हूँ कि हमारा देश अप्रामाणिक साधनोंसे स्वतन्त्र नहीं हो सकता। यदि आप तमाम दलोंको एकत्र कर दें या कमसे-कम उनकी एक-दूसरेपर आरोप- प्रत्यारोपकी प्रवृत्ति मिटा दें तो आप देशकी भारी सेवा करेंगे। आप श्याम बाबू और सुरेश बाबूसे खास तौरपर बात करें। यदि उन्हें मुझपर अविश्वास है या किसी तरका सन्देह है तो वे मुझसे आकर क्यों नहीं कहते? हमारे विचार चाहे जुदे-जुदे हों, परन्तु इस कारण हमें एक-दूसरेको गालियाँ देनेकी आवश्यकता नहीं है।' मैंने बीच ही में कहा, 'ऐसा ही आरोप 'फॉरवर्ड' पर भी है। उसके बारेमें आप क्या कहते