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दार्जिलिंगके संस्मरण

किन्तु चरखा और खादीकी चर्चामें ही हमारा अधिक समय जाता था——खास तौरपर देहातके पुनरुत्थानके सिलसिलेमें। इसके लिए उन्होंने कोई डेढ़ लाख रुपया भी इकट्ठा कर रखा था। मैंने उनसे कहा कि आपकी योजना इतनी बड़ी है कि पूरीकी पूरी एक साथ अमलमें नहीं लाई जा सकती। मैंने प्रताप बाबूका तैयार किया ढाँचा देखा है और मुझे वह बिलकुल पसन्द नहीं है, क्योंकि वह मुझे तो बिलकुल अव्यवहार्य मालूम होता है। इसे देशबन्धु नहीं देख पाये थे। सच तो यह है कि देशबन्धु भी सहमत थे कि वह चलने लायक नहीं है। प्रताप बाबूने स्वयं भी मान लिया था कि वह चलने लायक नहीं है। मैंने देशबन्धुसे कहा कि चरखेको गाँव सम्बन्धी तमाम प्रवृत्तियोंका मध्यबिन्दु बनाया जाना चाहिए। अन्य तमाम प्रवृत्तियाँ उसके आसपास घूमती रहें और जहाँ चरखा जम सके वहींसे उनकी शुरुआत की जा सकती है। इसके अतिरिक्त यह ग्राम संगठनका काम राजनैतिक उखाड़ पछाड़ों से तो मुक्त रहे और एक ऐसे लोगोंकी समितिके जिम्मे कर दिया जाये जो उसके विशेषज्ञ हों। उसे स्थायी अधिकार दे दिये जायें और उसका एकमात्र काम ग्रामसेवा करना रहे। आप सतीश बाबूसे ऐसी समिति बनाने और कांग्रेसकी तरफसे इस कामको सँभाल लेनेका अनुरोध करें। मैंने यहाँ अपने कथनका सार मात्र दिया है। देशबन्धु मेरे कथनसे न केवल सहमत ही हुए, बल्कि उन्होंने उसको नोट भी कर लिया। वे उसे तुरन्त ही कार्यान्वित करनेके लिए उत्सुक थे। उन्होंने कहा कि आपके दार्जिलिंग रहते हुए ही मैं सतीश बाबूसे इस सम्बन्धमें बातचीत कर लेना और फिर कांग्रेसकी समितिको इसके सम्बन्धमें आवश्यक प्रस्ताव स्वीकृत करनेकी हिदायत दे देना चाहता हूँ। अतः सतीश बाबू तुरन्त बुलाये गये। वे आ गये। पहले तो हम तीनोंने साथ बैठकर सलाह की, फिर मैं दूसरे काममें लग गया और देशबन्धु अकेले सतीश बाबूसे विविध बातें करते रहे। तय हुआ कि सतीश बाबू संस्थाके पहले सदस्य हों, सतकौड़ी बाबू दूसरे हों और दोनों मिलकर एक तीसरा सदस्य चुनें। ग्रामकोषका एक हिस्सा तुरन्त उनके हवाले कर दिया जाये और मैं जलपाईगुड़ीमें मिलनेवाली थैलीका एक अंश उस मण्डल या समितिको दे दूँ। यदि आवश्यक हो तो संस्था लोक हितकारिणी संस्थाओंके कानूनके अनुसार रजिस्टर करा ली जाये; जिससे उसकी बुनियाद मजबूत हो जाये। देशबन्धुने कहा था कि वे इस कामके लिए सम्बन्धित कानूनका अध्ययन करेंगे। देशबन्धुने प्रताप बाबूसे इस सारी चर्चा और इस निर्णयका जिक्र किया था और उन्हें इसके अनुसार काम करनेकी हिदायतें भी दे दी थीं।

यह थी चरखेके प्रति और उसके द्वारा ग्रामसंगठन करनेकी उनकी धुन। उन्होंने कहा, 'यदि लॉर्ड वर्कनहेड हमें निराश कर देंगे तो मैं नहीं जानता कि हम कौंसिलोंमें क्या करेंगे, परन्तु मैं यह अवश्य जानता हूँ कि हमें आपके चरखेके कार्यक्रमको जरूर आगे बढ़ाना चाहिए और अपने गाँवोंका संगठन करना चाहिए। हमें अपने राष्ट्रको फिर उद्यमशील बना देना चाहिए। हमें कौंसिलोंको शक्ति देनी चाहिए। मुझे बंगालके नवयुवकोंको सँभालना चाहिए। मुझे सम्भव हो तो सरकारकी सहायता से और आवश्यक हो तो उसके बिना भी, यह प्रत्यक्ष दिखा देना चाहिए कि स्वराज्य