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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यदि हो सका तो मैं इस अनोखे अभिनयकी समीक्षा आगामी अंकमें करनेकी चेष्टा करूँगा। इस बीच हमारा कुछ कर्त्तव्य उस मृत आत्माके प्रति है जिसने अंग्रेजोंको-भारतवर्षके सम्बन्धमें पहलेसे अधिक विचार करनेपर मजबूर किया है। अगर वे जीवित होते तो इस समय क्या करते? इसमें निरुत्साहित होनेका कोई कारण नहीं और न रोष करनेका कोई कारण है। लॉर्ड बर्कनहेडसे कुछ उम्मीद रखनेकी कोई कारण-सामग्री हमारे पास न थी। उन्होंने भारतमें अंग्रेजी शासनकी प्रशंसामें जो कुछ कहा है वह कोई नई बात नहीं है। कोई परिश्रमी उपसम्पादक भी लॉर्ड बर्कन हेडके ख्यातनामा पूर्वाधिकारियोंके भाषणोंमें से ऐसी ही बातोंके उद्धरण प्रायः इन्हीं शब्दोंमें प्राप्त कर सकता है। यह भाषण क्या है; हमें अपने पक्षको सुव्यवस्थित बनानेकी चेतावनी है। जहाँतक मेरा सम्बन्ध, है इसके लिए उनका कृतज्ञ ही हूँ। मेरे सामने देशबन्धुका नुस्खा मौजूद है। मैंने वह पाठकोंके सामने पेश भी कर दिया है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १६-७-१९२५
 

२२५. पत्र : महादेव देसाईको

सिराजगंजसे आते हुए
शुक्रवार [१० जुलाई, १९२५][१]

चि॰ महादेव,

गाड़ी बहुत हिल रही है। लिखना जरूरी था इसलिए लिख रहा हूँ। 'यंग इंडिया' की सामग्री यहाँसे शायद सीधी भेजनी पड़े। वह अभी तैयार नहीं हुई है; इसलिए शायद असम मेलसे ही भेजी जायेगी। उक्त न्यासपत्र ले रखना।

बापूके आशीर्वाद

[पुनश्च :] यहाँ शायद तीन हजारके लगभग रुपये इकट्ठे हो जायेंगे।

गुजराती पत्र (एस॰ एन॰ ११४३१) की फोटो-नकलसे।

 
  1. गांधीजी १० जुलाई, १९२५ को सिराजगंज गये थे।