पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 27.pdf/४१०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३७८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मेरा यह दृढ़ मत होता जाता है कि दुनियामें बालविधवा-जैसी कोई वस्तु होनी ही नहीं चाहिए। बाल और विधवा, ये दो परस्पर विरोधी शब्द हैं। वैधव्य धर्म नहीं है, संयम धर्म है। बलात्कार और संयम ये दोनों परस्पर विरोधी हैं——एकसे मनुष्यकी अधोगति होती है और दूसरेसे उन्नति। बलात् पालन किया गया वैधव्य पाप है, किन्तु स्वेच्छासे पालन किया गया वैधव्य धर्म है, आत्माकी शोभा है और समाजकी पवित्रताकी ढाल है। यह कहना कि पन्द्रह सालकी बालिका विवेकपूर्वक वैधव्यका पालन करती है, अपनी उद्धतता और अज्ञान प्रकट करना है। पन्द्रह वर्षकी बालिका वैधव्यके कष्टोंको क्या जान सकती है? माता-पिताका धर्म है कि वे उसके विवाहके लिए हर तरह की सहूलियतें कर दें। एक कुरीतिके अधीन होना कायरता है और उसका विरोध करना पुरुषार्थ।

पाटीदारोंकी[१] विवाह-विधिके सम्बन्धमें और उनमें प्रचलित प्रथाओंके सम्बन्धमें मैंने बहुत-कुछ सुना है। अतः मुझे इस बहनके पत्रमें कोई अतिशयोक्ति नहीं दिखाई देती।

मैं युवती विधवाओंको क्या सलाह दूँ? इसका विचार करते समय मुझे अपनी अक्षमताका भान हो जाता है। उन्हें विवाह करनेकी सलाह देना तो आसान है, परन्तु वे विवाह किससे करें? उनके लिए वरकी खोज कौन करे? क्या वे गैर-बिरादरीमें ब्याह कर लें? क्या उन्हें खोजनेसे वर नहीं मिल सकता है? क्या वे विज्ञापनसे वर ढूँढ़कर विवाह करें? क्या विवाह कोई सौदा है? जहाँ लोकमत विरुद्ध अथवा उदासीन है वहाँ बाल-विधवाओंके लिए वर खोजना लगभग असम्भव है। और यदि सुयोग्य वर न मिले तो मैं उन्हें हर किसीसे विवाह-सूत्रमें बँध जानेकी सलाह कैसे दे सकता हूँ?

इसलिए मैं तो इन बाल-विधवाओंके माता-पिताओं तथा अभिभावकोंसे ही प्रार्थना कर सकता हूँ। परन्तु 'नवजीवन' उनके हाथोंमें कहाँ पहुँचता है? ये लोग तो प्रायः अखबार ही नहीं पढ़ते। ऐसा धर्म-संकट उपस्थित है।

फिर भी मैं विधवाओंको इतनी सलाह तो दे ही सकता हूँ कि वे शान्तिपूर्वक कष्ट सहन करें। वे अपने पुरुष या स्त्री अभिभावकोंके सामने अपना हृदय खोलकर रखें और उन्हें अपनी तमाम इच्छाएँ बतायें। यदि वे उनकी बात फिर भी न समझें या न मानें तो वे इसकी चिन्ता न करें और यदि उन्हें योग्य वर मिल जाये तो उससे व्याह कर लें। ऐसा वर खोजनेके लिए जिस तरह दमयन्ती, सावित्री और पार्वती ने तप किया उसी तरह वे भी इस युगके अनुकूल और इस युगमें सम्भव तप करें। वह तप क्या है——अभ्यास। विधवाके लिए अभ्यास——शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक अभ्यास——से बढ़कर मनको स्थिर करनेवाली दूसरी वस्तु नहीं। वे अपना एक-एक क्षण चरखेको देकर शारीरिक तप करें; अक्षर-ज्ञान प्राप्त करके मानसिक तप करें और आत्म-शुद्धि करके तथा आत्माकी पहचान करके आध्यात्मिक तप करें। उनके बड़े-बूढ़े उन्हें इन तीन कार्योंसे नहीं रोक सकते। और यदि रोकें भी तो उनका वह प्रयत्न व्यर्थ होगा। इन कार्योंको करनेका अधिकार सभीको है। यदि वह अधिकार विधवाओंको न दिया जाये तो वे अवश्य सत्याग्रह करें।

  1. गुजरातकी पटेल जाति।