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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पसन्द आते हैं तबतक वे उसे मूल्य देकर लें और सँभाल कर रखें; क्योंकि मैं प्रति सप्ताह उसमें अपना आत्मा उंडेलता हूँ और जानता हूँ कि जिस रचनामें कोई अपढ़ मनुष्य भी अपना आत्मा उंडेलता है उसको पढ़ने और उसपर विचार करनेमें कल्याण है।

'नवजीवन' सत्याग्रहका अमूल्य मार्ग बतानेका साधन है। कह सकते हैं कि मैं इस सत्याग्रहका उपयोग बतानेके लिए ही जीता हूँ। यह नई चीज नहीं है; किन्तु मेरा दृढ़ विश्वास है कि मैं पुरानी चीजको ही नई भाषामें और नये ढंगसे पल्लवित करके प्रकाशित कर रहा हूँ। मैं मानता हूँ कि सत्याग्रहके ही द्वारा स्वराज्य मिल सकता है। स्वराज्य हमारी साँस है। वह हमारे पास नहीं है, इससे हमारी अवस्था उस मनुष्यकी-सी हो रही है जो सांस ही न ले पा रहा हो। यदि मैं लोगोंको सत्याग्रहके मूलतत्त्व समझा सकूँ तो मेरा, देशका और संसारका मार्ग सरल हो जायेगा। मैं यह बात भली-भाँति जानता हूँ। हाँ, सम्भव है कि उस मार्गके बता पानेके पहले ही मेरा देहान्त हो जाये।

परन्तु ऐसा हो भी तो कोई हानि नहीं। यह अटल नियम है कि पुण्यकर्मका नाश कभी नहीं होता।

सत्याग्रह चरखके बिना असम्भव है। अन्न भूखों मरते मनुष्यका ईश्वर है। इसीसे उपनिषद् ने कहा है, 'अन्नं वै ब्रह्म' अर्थात् अन्न ही ब्रह्म है। अन्न मनुष्यके शरीर बलसे उत्पन्न होता है। चूँकि हम पूरे शरीरबलका उपयोग नहीं करते; इसलिए हमें अपर्याप्त अन्न मिलता है। यहाँ लोग सालमें चार महीने आलस्यमें गुजारते हैं। इसका परिणाम कुल मिलाकर यह हुआ है कि लोग क्षीण हो गये हैं। चरखा लोगोंको सबल बनानेका और उनकी भूख मिटानेका एकमात्र अनुपम साधन है। वर्षाकी एक बूँदका कुछ असर नहीं होता; परन्तु जब असंख्य बूँदें इकट्ठी हो जाती हैं तब उनकी पोषक शक्ति ऐसी हो जाती है कि वह सारी दुनियाको हर साल नवीन चेतना देती है। इसी तरह एक चरखेका असर भले ही कुछ न होता दिखाई दे; परन्तु चरखा-समुदायकी शक्ति वर्षाके बिन्दुओंके समुदायके वरावर तो अवश्य है——और एक तरहसे तो उससे भी अधिक है। यदि पानीकी एक ही बूँद गिरती है तो वह व्यर्थ जाती है। बहुत-सी बूँदें असमय गिरती हैं तो वे भी हानि करती हैं। किन्तु चरखा एक भी चलाया जाये तो उससे एक आदमीको तो लाभ पहुँचता ही है। चरखेके लिए असमय तो होता ही नहीं। इसीलिए इस चरखेके अभिक्रम (प्रारम्भिक उद्यम) का नाश नहीं और इसमें प्रत्यवाय (हानि) भी नहीं; प्रत्युत इसके अल्प उपयोगसे भी मनुष्य महाभयसे मुक्त होता है।[१]

मेरा यह दृढ़ विचार है। इस कारण यदि 'नवजीवन' चरखेकी चर्चाको प्रधानता न दे तो फिर उसके लिए कोई कार्य नहीं रह जाता।

  1. नेहाभिक्रम नाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते।
    स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात्॥ भगवद्गीता २-४०