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२२९. खादी प्रतिष्ठान

'नवजीवन' के पाठक जानते हैं कि मैं बंगाल खादी प्रतिष्ठानके कार्यसे कितना प्रसन्न हुआ हूँ। मेरे विवरणको पढ़कर भाई लक्ष्मीदासने[१] भाई मथुरादासको प्रतिष्ठानके निरीक्षणके लिए भेजा था। उन्होंने अपनी जाँचके फलस्वरूप अपना मत लिपिबद्ध करके उसकी एक नकल मुझे भेजी है। मैंने अपना निरीक्षण भले ही सावधानीसे क्यों न किया हो; किन्तु वह शास्त्रीय नहीं माना जा सकता। भाई मथुरादासका निरीक्षण शास्त्रीय है, क्योंकि उन्होंने इस विषयका विशेष-रूपसे अध्ययन किया है। उन्होंने अन्य संस्थाओंकी जाँच भी सावधानीसे की है और वे उनका हिसाब जबानी बता सकते हैं। इससे मैं उनके निरीक्षणको अपने निरीक्षणकी अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण समझता हूँ। मेरे निरीक्षणके विवरणसे पाठक मेरा मत जान सकते हैं; उन्हें उसमें प्रमाण कम मिलेंगे किन्तु शास्त्रीय निरीक्षणके विवरणमें पाठकोंको मेरे मतके समर्थक प्रमाण भी मिलेंगे। भाई मथुरादासका निरीक्षणका विवरण ऐसा होनेके कारण इसी अंकमें अन्यत्र दिया गया है।

मैं चाहता हूँ कि खादीके कार्यकर्त्ता उनके विवरणको ध्यानपूर्वक पढ़ें। खादी प्रतिष्ठानमें एक व्यापारिक पेढ़ीकी भाँति कार्यकर्त्ताओंसे विधिवत् काम लिया जाता है और उन्हें पूरा वेतन दिया जाता है। यह उस संस्थाकी विशेषता है। इसके बावजूद उस संस्थामें त्यागी लोग हैं। इसका पहला कारण यह है कि इसके दो मुख्य कार्यकर्त्ता, आचार्य राय और उनके दाहिने हाथ सतीश बाबू दोनों त्यागी हैं। इसका दूसरा कारण यह है कि व्यापारियोंके समान कार्यपद्धति रखनेपर भी इसके पीछे स्वार्थ नहीं है।

मैंने जलपाईगुड़ीके व्यापारियोंसे कहा था कि व्यापार हिदुस्तानकी मुक्तिकी चाबी है। हमारे व्यापारियोंने इस व्यापारके लिए ही हिन्दुस्तानको पराधीन बनाया था। इसलिए जब व्यापारी वर्ग ही स्वार्थके बजाय परमार्थकी साधना करेगा तब हिन्दुस्तान जागृत होगा। यदि व्यापारी करोड़ों रुपये दानमें दें तो वह काफी नहीं है। रुपये तो वे दे ही रहे हैं, किन्तु जब वे अपनी बुद्धि भी हिन्दुस्तानकी सेवामें लगा देंगे तभी यह कार्य सिद्ध होगा। ऐसा व्यापारी अपने लिए नहीं बल्कि हिन्दुस्तानके हितार्थ धनसंग्रहका विचार करेगा। फिर वह यह नहीं सोचेगा कि हिन्दुस्तानके हितार्थ भी किस धन्धेमें अधिक धन मिलेगा, बल्कि यह देखेगा कि किस धन्धेसे हिन्दुस्तानके अधिकसे-अधिक लोग गाँवोंमें अपने घरोंमें रहते हुए अधिकसे-अधिक कमाई कर सकते हैं। ऐसे कुछ व्यापारी हमें मिले हैं, इसीलिए तो वह प्रगति हो रही है जिसे हम देख रहे हैं। यह प्रगति साधारण वैराशिकसे जानी जा सकती है।

मैं सतीश बाबूके कार्यकी सराहना करता हूँ, क्योंकि उन्होंने अपना लाखोंका व्यापार छोड़ा है और अपनी बुद्धि, कुटुम्ब और धन खादी प्रचारके निमित्त अर्पित

  1. साबरमती आश्रमके लक्ष्मीदास आसर।