पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 27.pdf/४१६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३८४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कर दिये हैं। किन्तु फिर भी उनको अपने इस त्यागका तनिक भी खयाल नहीं है, अथवा कहना चाहिए कि उन्हें इसका तनिक भी अभिमान नहीं है; क्योंकि उन्हें इस त्यागमें सुखकी अनुभूति मिली है। वे इस त्यागके बिना रह नहीं सकते।

पाठक इस सराहनासे यह न समझें कि सतीश बाबूके कार्यकी आलोचना व्यापारिक दृष्टिसे की ही नहीं जा सकती। किन्तु यदि की जा सकती हो तो इसमें उनका दोष नहीं है। इसका कारण इस कार्यविषयक उनके ज्ञानकी कमी है। यह कमी अनुभवसे दूर हो जायेगी। हम तो इतना ही चाहते हैं कि इस तरहके दूसरे बहुतसे कुशल व्यापारी अपना सर्वस्व त्याग कर अपने स्वार्थके लिए नहीं, किन्तु देशके हित के लिए खादीका व्यापार करने लगें।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १२-७-१९२५
 

२३०. टिप्पणियाँ

पिछले वर्ष अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीने सूत कातनेके सम्बन्धमें जो प्रस्ताव पास किया था, उसके अन्तर्गत अखिल भारतीय खादी बोर्डको जो सूत मिला है उसने उसका संक्षिप्त विवरण मुझे भेजा है। विवरण इस प्रकार है :[१]

इस विवरणसे हमें कुछ महत्त्वपूर्ण शिक्षा मिलती है। हर संस्था एक यन्त्रकी तरह होती है। जैसे यन्त्रकी एक भी कील ढीली हो तो यन्त्र उस हदतक कमज़ोर हो जाता है और कभी-कभी तो टूट भी जाता है। वैसा ही सब संस्थाओंके और मुख्यतः रचनात्मक कार्य करनेवाली संस्थाओंके सम्बन्धमें है। यदि उनकी छोटीसे-छोटी विगतकी भी सावधानी न रखी जाये तो उनके उत्पादनमें अन्तर आ जाता है। कमजोर सूत, जो ठीक बटा न हो, ठीक तरह अटेरा हुआ न हो और ऐसा प्रत्येक दोष खादीको कमजोर बनाता है, बुनाईका दाम बढ़ाता है और उससे बुनाईमें भी देर लगती है। हम यह भी देखते हैं कि खादीके उत्पादनमें जो शिथिलता हुई है। उसका कारण केवल कताईके दोष ही हैं।

कातनेवाले चेतें

इस खादीकी कीमत बाजार भावसे रखी गई है। क्योंकि इसकी मात्रा इतनी कम है कि उसकी कीमत घटाकर बेचनेका कोई अर्थ नहीं होता और कीमत घटानेके बाद उस खादीको लेनेका प्रथम अधिकार किसे रहे, यह प्रश्न भी उठता है। ऐसा प्रश्न इस थोड़ी-सी खादीके सम्बन्धमें नहीं उठना चाहिए, इस कारण भी मैंने इस खादीको बाजार भावसे बेचने की सलाह दी है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १२-७-१९२५
  1. यहाँ नहीं दिया जा रहा है।