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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लेकिन मैंने यह आशा नहीं की थी कि मुझे देशबन्धुके स्थानमें कलकत्ताके मेयरका चुनाव करनेमें परामर्श देना पड़ेगा या मार्गदर्शन करना पड़ेगा। यह एक ऐसा काम था जिससे खुशीके साथ मैं अपना हाथ खींच लेता। लेकिन प्रायः एक सिपाहीकी कोई मर्जी नहीं होती। इस चुनावमें दिलचस्पी रखनेवाले दलोंने यह मामला मेरे सामने रखा। और मैं इस दायित्वको टाल नहीं सका, क्योंकि मैं ईमानदारीसे यह नहीं कह सकता था कि यह कार्य मेरे सामर्थ्यसे बाहर है। और फिर तो इस भँवरमें एक बार पड़नेके बाद इसमें से निकलना मेरे लिए तबतक मुश्किल ही हो गया, जबतक कांग्रेस- नगरपालिका दलने इसे विधिवत् तय नहीं कर दिया।

मैंने जो परामर्श दिया वह सही था या नहीं, उसमें नगरका हित था या नहीं, यह निःसन्देह एक ऐसी बात है जिसके बारेमें विभिन्न मत हो सकते हैं। मैं केवल इतना ही कह सकता हूँ कि मैंने वही परामर्श दिया जो मेरी रायमें देशके लिए और महलोंकी इस नगरीके लिए सर्वोत्तम था। मेरे सामने मापदण्डके रूपमें एक परम्परा और एक नीति मौजूद थी। लेकिन मेरा कर्त्तव्य यह था कि मैं वही काम करूँ जिसे मेरी रायमें देशबन्धु जीवित होते तो करते और जो किसी भी तरह सर्वविदित और सर्वमान्य नैतिक सिद्धान्तोंसे विरुद्ध नहीं है। कांग्रेसने चार वर्ष पूर्व अपने हितकी दृष्टिसे और रचनात्मक कार्यक्रमको बढ़ानेकी दृष्टिसे नगरपालिकाओं और जिला बोर्डोंपर कब्जा करनेका फैसला किया था। इस कब्जेके पीछे खयाल यह नहीं है कि सफाईकी देखभाल ज्यादा अच्छी हो; बल्कि यह है कि और भी अधिक राजनैतिक सत्ता प्राप्त हो। इस आकांक्षामें कोई बुराई नहीं है। सरकारने स्वयं अपनी बनाई हुई इन संस्थाओंका उपयोग सफाईमें सुधारकी अपेक्षा अपनी सत्ता मजबूत करने और अपनी प्रतिष्ठा बढ़ानेके लिए अधिक किया है। मुझे मालूम है कि लन्दन काउंटी कौंसिलके चुनाव राजनैतिक प्रश्नोंको लेकर लड़े जाते हैं। और जब राजनैतिक उत्तेजना बढ़ जाती है तव नगरपालिकाके चुनावोंका उपयोग राजनैतिक वातावरण नापनेके लिए एक सांकेतिकाके रूपमें किया जाता है। और यदि राजनैतिक उद्देश्योंके लिए नगरपालिकाओंका उपयोग करना इंग्लैंडमें आवश्यक माना जाता है तो इस देशमें जहाँ समस्त जाति एक विदेशी जातिके राजनैतिक शासनके नीचे दबी पड़ी है, इसकी आवश्यकता और भी अधिक है। यदि हम एक बार सरकार द्वारा निर्मित तन्त्रका उपयोग करना उपयुक्त मान लेते हैं तो हमारे लिए राजनैतिक सत्ता प्राप्त करनेके उद्देश्यसे नगरपालिकाओंकी संस्थाओंपर कब्जा करना एक अनिवार्य कदम हो जाता है। देशबन्धुने कलकत्ता नगरनिगमपर इसी उद्देश्यसे कब्जा करके उसका उपयोग कांग्रेसकी या स्वराज्यदलकी, जिसका अर्थ बंगालमें एक ही होता है, सत्ता मजबूत करनेके लिए अत्यन्त प्रभावकारी रूपसे किया था। क्या उन्होंने ऐसा करके निगमके हितकी उपेक्षा की थी? मैं जोरसे यह कहनेका साहस करता हूँ कि उन्होंने उसकी उपेक्षा नहीं की। इसके विपरीत नगरपालिकाके सम्बन्धमें उनकी आकांक्षा इतनी ही ऊँची थी, जितनी राजनीतिके सम्बन्धमें।

तब उनकी जगह निगमका मेयर किसे बनाया जाता? उनका पद किसको दिया जाये, यह तय करना भी उनके द्वारा स्थापित दलके अधिकारकी बात थी।