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कलकत्ताके मेयर

यह पद उसको देना उचित था जो दलके महान् प्रधानकी परम्पराको सर्वोत्तम रूपसे निभा सकता था और अपने दलकी प्रतिष्ठामें वृद्धि कर सकता था। साथ हीं यह भी मानी हुई बात है कि विशुद्ध नगरपालिकाकी दृष्टिसे वह दलमें भी सर्वोत्तम व्यक्ति हो, यही उचित था। मेरी रायमें जे॰ एम॰ सेनगुप्त ऐसे योग्यतम व्यक्ति थे, जिनमें ये सब गुण हैं। और यदि उन्होंने स्वराज्यदलका नेतृत्व करनेकी कृपा की तो वे उस निमित्तसे प्राप्त होनेवाली सभी प्रकारकी सहायताके पात्र थे जो उन्हें श्री देशबन्धुके कर्त्तव्योंको शोभाजनक रूपसे और प्रतिष्ठापूर्वक वहन करनेके योग्य बनानेके लिए दी जा सकती थी।

लेकिन क्या वे इन तीनों कर्त्तव्योंका भार उचित रूपसे उठा सकते हैं? वे प्रान्तीय कांग्रेस कमेटीके अध्यक्ष चुने ही जा चुके थे। वे क्या स्वराज्यदलका नेतृत्व करते रहकर कांग्रेसके रचनात्मक कार्यको पूरा कर सकते हैं और साथ ही कलकत्ताके मेयरके भारी उत्तरदायित्वको निभा सकते हैं? यदि वे इन तीनों पदोंके कार्य-भारके नीचे दब जायें तो उन्हें इन तीनों पदोंका सम्मान देनेसे क्या लाभ? मेरा उत्तर यह है कि अपने सामर्थ्यके सम्बन्धमें सर्वोत्तम निर्णय तो श्री सेनगुप्त ही कर सकते थे। यदि वे सत्ताकी आवश्यकता महसूस करके उसे प्राप्त करना चाहते थे तो उनको उसका दिया जाना ही उचित था। उसे उनपर बलात् लादना ठीक नहीं होता। यदि श्री सेनगुप्त कोई कुचकी हैं और देशके हितकी अपेक्षा अपना स्वार्थ ही अधिक सिद्ध करते हैं तो निःसन्देह यह प्रयोग एक खतरनाक प्रयोग करना कहलाता। उस अवस्थामें उनको स्वराज्यदलका नेता बनाना भी खतरनाक था। यदि वे सन्देहसे परे हैं और उनको अपने कामको पूरा करनेके लिए मेयरके पदकी जरूरत है और यदि वे उसके भारको गौरवास्पद रूपमें वहन कर सकते हैं तो उन्हें मेयरका पद देना उचित है। देशबन्धुके उत्तराधिकारीकी बात तो दूर, कांग्रेसी कहलानेवाला कोई व्यक्ति भी केवल सम्मानकी खातिर सम्मानकी माँग नहीं कर सकता। मेरी दृष्टिमें श्री सेनगुप्तकी स्थिति मैक्स्विनी-जैसी है जो अपने सम्मानके लिए नहीं, बल्कि उस खतरेका सामना करनेके लिए जो ऊँचे पदके कारण उनके सामने मौजूद था, कॉर्कके लार्ड मेयर बनना चाहते थे। देशबन्धुके उत्तराधिकारीकी स्थिति सम्भवतः मैक्स्विनीकी स्थितिसे भी ज्यादा खतरनाक है। मैक्स्विनीने अपनी जानकी बाजी लगा दी थी। देशबन्धुके उत्तराधिकारीको अपनी समस्त ख्याति दाँवपर लगानी पड़ी। देशबन्धुने त्याग और सम्मानका जो माप- दण्ड छोड़ा है उससे तनिक भी हटते ही उनके उत्तराधिकारीकी ख्याति जीवन-भरके लिए समाप्त हो सकती है और उनकी यह जीवित मृत्यु शारीरिक मृत्युसे ज्यादा बुरी होगी। श्री सेनगुप्त द्वारा कलकत्ताके मेयर पदकी माँगका समर्थन करते हुए यह बात मैंने अपने मनमें सोची और अपने मित्रोंको समझाई और कांग्रेस दल तथा कांग्रेस नगरपालिका दलने मेरे इस तर्कको समझा और सराहा और यह कहते हुए मुझे प्रसन्नता होती है कि थोड़े-से लोगोंकी असहमतिके साथ श्री सेनगुप्तकी नामजदगीको मंजूर किया, मैं यह आशा करता हूँ कि वे उनका भार जितना हल्का कर सकते हैं, उतना करेंगे। मुझे अपने मनमें कोई सन्देह नहीं है कि श्री सेनगुप्त देशबन्धु द्वारा स्थापित ऊँचे मानदण्डके अनुकूल आचरण करनेका प्रयत्न करेंगे।