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टिप्पणियाँ

अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए वस्तुतः नगरपालिकाके आचारका उच्चत्तम स्वरूप सामने रखा है। हमें इस स्तरका नगरपालिका-आचार भारतमें अभी विकसित करना है और मैं आशा करता हूँ कि इसका गौरव कांग्रेसको मिलेगा। किन्तु यह बात तभी बनेगी जब हमें ऐसे लोग मिलेंगे जो अपनी महत्त्वाकांक्षाकी पूर्ति उसी समय मानेंगे जब उनके नगरोंकी नालियाँ और पाखाने बिलकुल साफ-सुथरे रहने लगेंगे, जब वे सस्तेसे-सस्ते भावोंमें शुद्धसे-शुद्ध दूध जुटा सकेंगे एवं उनके शहर वेश्यागमन और शराबखोरीसे मुक्त हो जायेंगे।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १६-७-१९२५
 

२३७. टिप्पणियाँ

स्मारकके सम्बन्धमें दौरा

मैं इस समय बंगालमें जो दौरा कर रहा हूँ वह स्मारक सम्बन्धी दौरा बन गया है। मेरी इच्छा नहीं थी कि मैं इस समय कलकत्ता छोडूँ और जबतक १० लाख रुपये इकट्ठे नहीं हो जाते तबतक यहाँसे जाऊँ। लेकिन, मैंने जिन जिलोंमें जानेका वचन दिया है उन जिलोंके लोगोंको निराश कर सकनेका मुझमें साहस नहीं है। लेकिन मैंने उन लोगोंको चेतावनी दे दी है कि इस बार मेरा दौरा देशबन्धु-स्मारक कोषके लिए धनसंग्रह करने और उनका सन्देश देनेके निमित्त होगा। केवल स्मारकके दृष्टिकोणसे मुझे यह दौरा करते हुए प्रसन्नता होती है। गरीब लोगोंने——स्त्री-पुरुष दोनोंने ही सर्वत्र आश्चर्यजनक तत्परता दिखाई है। उनको समझाने-बुझानेकी कोई जरूरत नहीं पड़ी। उन्होंने माँगते ही यथाशक्ति पूरा सहयोग किया है। मैंने अकसर देखा है कि बूढ़ी विधवाएँ अपने पल्लेकी गाँठ खोलकर उसमें बँधी हुई रकम दे देती हैं। अकसर मेरी यह इच्छा है कि मैं ऐसे दानको लौटा दूँ; लेकिन जब मैंने इसपर दुबारा विचार किया तो मैंने उसके बारेमें अपने मनको समझा ही नहीं लिया, बल्कि मुझे ऐसा लगा कि उसको स्वीकार करना एक प्रिय कर्त्तव्य ही है। क्या देशबन्धुने अपना सर्वस्व दान नहीं कर दिया था और जो अस्पताल बनाया जायेगा, क्या उससे संकटग्रस्त स्त्रियोंको लाभ नहीं मिलेगा? क्या जल्दी ही तैयार होनेवाली उस संस्थामें, कुछ गरीब विधवाओंको नसें बननेका प्रशिक्षण नहीं दिया जायेगा? यह ईश्वरीय नियम है कि जो मनुष्य किसी अच्छे उद्देश्यके लिए अपना सर्वस्व दे देता है उसको उससे दस गुना फल मिलता है। मैं इस नियमपर सन्देह क्यों करूँ? सम्पन्न लोगोंने भी धन देनेमें आनाकानी नहीं की। मुझे शहरोंमें यह आशा न थी कि स्त्रियोंकी सभाओंमें जेवर मिलेंगे। लेकिन ये नेक बहनें कहीं भी जेवर देनेमें नहीं चूकीं। सिराजगंजमें दो बहनोंने अपनी सोनेकी भारी-भारी जंजीरें दान कर दीं। यह भी उल्लेखनीय है कि उन चारों जगहोंमें जहाँ इन टिप्पणियोंको लिखनेके समयतक