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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैं जा चुका हूँ, स्त्रियोंकी सभाओंमें जो धन इकट्ठा हुआ है, वह पुरुषोंकी सभाओंमें इकट्ठी की गई राशिके बराबर ही है; यद्यपि पुरुषोंको सभाओंमें उपस्थिति हजारोंकी होती थी और स्त्रियोंकी सभाओंमें हजारसे भी कम हुआ करती थी।

गरीबीकी निशानी

इस धनसंग्रहके दौरान मुझे कई बातें देखने और समझनेका मौका मिला है। इसने जनसाधारणकी गरीबीकी मूरत आँखोंके सामने खड़ी कर दी। मैं हजारों लोगोंसे कोषमें चन्दा ले रहा हूँ। सभी सभाओंमें एक-एक पैसा देनेवाले तो बहुतायतसे होते हैं। बहुत-से लोगोंने धेलेतक दिये हैं। इसका कारण यह नहीं है कि लोग इससे ज्यादा रकम देना नहीं चाहते थे; बल्कि इसका कारण, जहाँतक जानता हूँ, यह है कि उनके पास ज्यादा था ही नहीं। उन्होंने मेरे सामने आकर अपनी गाँठें खोलीं या अपनी जेबें खाली कीं।

मौन कार्यकर्त्ता

सिराजगंजसे ईशरदीतक हमने एक पैसेन्जर गाड़ीमें यात्रा की है। यह गाड़ी एक ब्रांच लाइनपर चलती है। इसपर स्टेशन १०-१० मिनट बाद आ पाते हैं। स्टेशनोंपर गाँवोंके लोग सैकड़ों की संख्यामें और कहीं-कहीं तो हजारोंकी संख्यामें इकट्ठे हुए और उन्होंने चन्दा दिया। इस सारे जबर्दस्त प्रदर्शनकी व्यवस्था बंगालके मौन निःस्वार्थ युवकोंने की है। उनके नाम अखबारोंमें कभी नहीं छपेंगे। वे शायद यह चाहते भी नहीं कि उनकी चर्चा की जाये। उनका खरा काम ही उनका विज्ञापन है। यदि वे न होते तो गाँवोंके लोगोंको कुछ पता ही न चलता। ये नवयुवक उनके चलते-फिरते अखबार हैं। क्यों कि ये लोग न तो पढ़ना जानते हैं और न लिखना। जो थोड़े-से लोग पढ़ना या लिखना जानते भी हैं वे इतने गरीब हैं कि अखबार नहीं खरीद सकते। इस व्यवस्थाका सारा श्रेय भारतके इन वीर और त्यागी सेवकोंको प्राप्त है। इन स्टेशनोंपर हुई हर मुलाकात अत्यन्त व्यवस्थित, शान्तिपूर्ण, गम्भीर और काम-काजी ढंगसे हुई। स्वराज्य निश्चय ही इन युवकोंकी मार्फत मिलेगा, जिन्हें अपने देशसे प्रेम है। मुझे रेल अधिकारियोंका उल्लेख करना भी न भूलना चाहिए। बड़ेसे-बड़े और छोटेसे-छोटे अधिकारीतक ने मेरी इससे पहलेकी यात्रामें असाधारण शिष्टता और जागरूकता दिखाई है; लेकिन अब मुझे पहलेसे भी ज्यादा उनकी सहायताकी जरूरत है। छोटे स्टेशनोंपर कुछ ही मिनटोंमें हजारों लोगोंसे रुपया इकट्ठा करनेका काम कोई साधारण काम नहीं है; फिर भी वह सफलतापूर्वक किया गया है क्योंकि मेरे कामको यथासम्भव हलका बनाने में लोगों और स्वयंसेवकोंके साथ इन अधिकारियोंने भी सहयोग दिया है। यह ध्यान रहे कि मुझे सभी स्टेशनोंपर गाड़ीसे उतरना, भीड़में जाना, रुपया इकट्ठा करना और समयपर अपने डिब्बेमें वापस आना पड़ता था। लोगोंसे अधिकतम योगदान प्राप्त करनेमें देशबन्धु अपने जीवनकालमें जितने शक्तिशाली थे, मरकर वे उससे अधिक शक्तिशाली हो गये हैं। उनके देशवासी यह अनुभव करते हैं कि वे उनके प्रति और इसीलिए अपने देशके प्रति ऋणी हैं।