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अस्पृश्योंके साथ बातचीत

देनेका एक निश्चित तरीका है। साथ ही इससे उन्हें सहायता देनेके सुधारकों द्वारा किये जानेवाले प्रयत्न भी व्यर्थ हो जायेंगे। एक और तरहके लोग भी हैं। मैं उनसे दक्षिणमें मिला। वे हिन्दू धर्मको छोड़कर ईसाई या मुसलमान बननेकी धमकी देते हैं। मैंने उनसे कहा कि यदि आप लोगोंमें कोई धर्म है तो उसकी अब परीक्षा हो रही है और यदि आप उसे इसलिए छोड़ना चाहते हैं कि आपके साथ दुर्व्यवहार होता है तो आपका धर्म ठीकरेके मोल भी महँगा है। मेरे इंग्लैंड जानेके कारण, मुझे जातिसे बहिष्कृत कर दिया गया था। मेरे विचारमें वैसा करना गलत था, किन्तु क्या उस कारण मुझे अपने धर्मका परित्याग कर देना चाहिए था? मेरे विचारमें तीसरा तरीका और एकमात्र शुद्ध तरीका आत्मशुद्धिका है अर्थात् वह तरीका ऐसा है जो आपपर लगाये जानेवाले सभी आरोपोंसे मुक्त है।

एक वकील मित्रने उत्तर दिया कि मैं समझता हूँ, हिंसा और धमकी : 'जिनका वर्णन आपने किया है, अच्छी चीजें नहीं हैं।'

हाँ, आत्मशुद्धि एक तरीका है। क्या आप मरे हुए पशुका मांस खाते हैं ?

नहीं, हममें से बहुत ही कम लोग मांस खाते हैं। हममें जो लोग वैष्णव हैं, वे मांस बिलकुल नहीं खाते; हाँ, हम मछली जरूर खाते हैं।

अच्छा, तब आपको आत्मशुद्धिके लिए औरोंकी अपेक्षा कम प्रयत्न करना पड़ेगा। आप लोगोंमें जो अपने-आपको उच्च समझनेकी थोड़ी-सी भी भावना है तो उसे आपको छोड़ देना चाहिए। आप उन सारी बुराइयोंको दूर करनेका प्रयत्न करें जिनका आरोप कट्टरपन्थी हिन्दू आपपर, सम्भवतः किसी आधारपर, लगाते हैं। इस प्रकार आप उनके पूर्वग्रहोंपर विजय प्राप्त कर लेंगे। इसका मतलब यह नहीं है कि बुराइयाँ उनमें नहीं हैं। लेकिन आपका यह काम नहीं कि आप उनसे नफरत करने लगें। हो सकता है कि यह लम्बी प्रक्रिया हो, किन्तु यही एक अचूक तरीका है। मैं जानता हूँ कि एकाध बार कड़ी कार्रवाई करके भी आप उनसे घुटने टिकवा सकते हैं। उदाहरणके लिए, कलकत्ता-जैसे नगरोंमें भंगी यदि इस बातपर हड़ताल कर दें कि आप हमारी निर्योग्यताओंको दूर नहीं करते तो हम काम नहीं करेंगे, तब मेरा विश्वास है कि वे सफल जरूर हो जायेंगे; किन्तु इससे विरोधी पक्षका हृदय नहीं बदलेगा। उनकी घृणा और भी बढ़ जायेगी। आपके लिए एकमात्र रास्ता यह है कि आप अपनेको इन सभी बुराइयोंसे ऊपर रखें; शेष सुधारकोंपर छोड़ दें। जैसा कि आप जानते हैं, मैं इस बुराईके विरुद्ध अपनी सारी शक्ति लगाकर संघर्ष कर रहा हूँ। यह मेरे लिए पूर्ण रूपसे धार्मिक प्रश्न है।

आप चाहते हैं कि हम सुधारकोंपर भरोसा करें। हम आपपर भरोसा करते है, लेकिन दूसरोंपर हम कैसे भरोसा कर सकते हैं। वे आज इसलिए अस्पृश्यताको बातें करते हैं कि हम राजनीतिको शतरंजमें उनके लिए उपयोगी मोहरे हैं। ज्यों- ही उनके राजनीतिक स्वार्थ सिद्ध हुए, वे हमें मझधारमें छोड़ देंगे। हम नहीं समझते कि वे हृदयसे यह विश्वास करते हैं कि यह उनके लिए आत्मशुद्धिका प्रश्न है या यह कि अस्पृश्यता निवारणके बिना स्वराज्य निरर्थक है। यह मैऺ स्वीकार करता हूँ