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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

तथापि परिषद् परम आदरणीय भारत मन्त्री द्वारा हाल ही में लॉर्ड सभामें की गई घोषणापर खेद प्रकट करती है, क्योंकि इसमें दिवंगत अध्यक्ष द्वारा पेश किये गये प्रस्तावकी कोई प्रतिक्रिया दिखाई नहीं पड़ती, इतना ही नहीं बल्कि उस घोषणाकी शैली और भाषा कुछ ऐसी है कि उससे सम्मानजनक सहयोग असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य हो गया है।

इसलिए परिषद् इस घोषणाके आधारपर स्वराज्यदलकी नीतिमें किसी प्रकारका परिवर्तन करनेका कोई कारण नहीं देखती। फिर भी यदि भारत सरकार द्वारा की जानेवाली अन्तिम घोषणा, जिसका जिक्र लॉर्ड बर्कनहेडने किया है, देशकी इस समयकी आवश्यकताओंको देखते हुए उचित हुई तो वह इसपर दुबारा गौर करनेको तैयार है।

[अंग्रेजीसे]
फॉरवर्ड, १७-७-१९२५
 

२४३. भाषण : स्वराज्यदलको बैठकमें[१]

कलकत्ता
१६ जुलाई, १९२५

बैठककी कार्रवाई समाप्त होनेपर गांधीजीने उपस्थित लोगोंके सम्मुख सदस्यताके लिए कताईकी शर्त न हटानेके प्रश्नपर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि यहाँ स्वराज्यवादियोंमें से काफी बड़ी संख्यामें लोग उपस्थित हैं। यदि आप लोग कहें कि कताईकी शर्त हटा दी जानी चाहिए तो इसके लिए मुझे अ॰ भा॰ कां॰ कमेटीकी बैठक बुलानी होगी। व्यक्तिगत रूपसे मैं यह मानता हूँ कि कताई-सदस्यताके लिए पिछले छः महीनोंमें बहुत काम किया गया है और मुझे आशा है कि शेष आधे वर्षमें और भी अधिक काम होगा। पर फिर भी यदि आप इस शर्तको हटाना ही चाहते हैं तो मैं इसमें और देर नहीं करूँगा।[२]

[अंग्रेजीसे]
सर्चलाइट, १९-७-१९२५
  1. पण्डित मोतीलालकी अध्यक्षतामें देशबन्धुके निवासपर हुई स्वराज्यदल महापरिषद्की इस बैठकमें गांधीजीको विशेष रूपसे बुलाया गया था। बैठकमें श्रीमती सरोजिनी नायडू, सर्वश्री वि॰ झ॰ पटेल, न॰ चि॰ केलकर, डॉ॰ अणे, डॉ॰ मुंजे, टी॰ प्रकाशम्, एस॰ श्रीनिवास आयंगार, रंगास्वामी अय्यंगार और जे॰ एम॰ सेनगुप्त भी उपस्थित थे।
  2. इसपर जे॰ एम॰ सेनगुप्त और पं॰ मोतीलाल नेहरूने कहा कि स्वराज्यवादियोंको कांग्रेसके साथ किये समझौतेपर कायम रहना चाहिए। इसे तोड़ना स्वराज्यवादियोंका, जो सब कांग्रेसी हैं, कांग्रेसकी नीतिसे हटना ही होगा।