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२४४. भाषण : स्वराज्यदलकी बैठकमें [१]

कलकत्ता
१७ जुलाई, १९२५

महात्माजीने, जो बैठकमें उपस्थित थे स्पष्ट शब्दोंमें कहा कि यदि आप सदस्यता-सम्बन्धी कताईकी शर्तको हटाना ही चाहते हैं तो मैं आपकी माँगको एकदम मानकर अ॰ भा॰ कां॰ कमेटीकी बैठक बुलाऊँगा। किन्तु फिर मेरे सम्मुख कांग्रेसकी कार्य-समितिकी अध्यक्षतासे त्यागपत्र देकर चरखा और खद्दरके प्रसारके लिए प्रचार करनेके अलावा और कोई चारा नहीं रह जायेगा। मैं स्वराज्यवादियोंको समझौतेसे मुक्त करके कांग्रेसके समादेशके प्रति उनके उत्तरदायित्वसे उन्हें पूरी तरह बरी करनेको तैयार हूँ। समझौतेके अनुसार कताई-सदस्यताका पूरे एक सालतक लागू रहना अनिवार्य था और इसी कारण अधिकतर स्वराज्यवादी इसे पूरे एक कार्यकाल तक लागू रखनेके पक्षमें थे। पर बहुमत यदि इस शर्तको हटानेके पक्षमें है तो उनकी इच्छाको ध्यानमें रखते हुए इस समझौतेको तोड़ दिया जाना चाहिए। अन्तमें उन्होंने कहा कि यदि कांग्रेस कताई-सदस्यताको समाप्त कर देती है तो जिस प्रकार कांग्रेसमें रहते हुए देशबन्धु दासने स्वराज्य दलकी स्थापना की थी उसी प्रकार मैं एक कताई-संस्थाकी अलग स्थापना करूँगा।[२]

[अंग्रेजीसे]
अमृतबाजार पत्रिका, १८-७-१९२५
 
  1. महापरिषद्की यह बैठक कताई-सदस्यताको समाप्त करनेके प्रश्नपर चर्चा करनेके उद्देश्यसे चित्तरंजन दासके दामाद एस॰ सी॰ रायके निवास स्थानपर हुई थी।
  2. निश्चित हुआ कि सितम्बरके अन्त या अक्तूबरके प्रारम्भमें कताई सदस्यतापर विस्तारसे चर्चा करनेके लिए अ॰ भा॰ कां॰ कमेटीकी बैठक बुलाई जाये। विवरणके अनुसार, "बैठकके अन्तमें गांधीजीने पण्डित मोतीलाल नेहरूको एक पर्ची लिखकर भेजी कि चूँकि कांग्रेसमें बहुमत स्वराज्यवादियोंका है, इसलिए स्वराज्यदलके अध्यक्षके नाते पण्डितजीको ही कांग्रेस कार्यसमितिकी अध्यक्षता भी सँभाल लेनी चाहिए। स्वराज्यवादियोंके खेमेमें इससे हलचल मच गई क्योंकि ज्यादातर स्वराज्यवादी गांधीजीका मार्गदर्शन खो देना पसन्द नहीं करते थे। अन्तमें तथ यह हुआ कि वर्षकी शेष अवधितक गांधीजी अ॰ भा॰ कां॰ कमेटीके अध्यक्ष बने रहें; किन्तु यदि अ॰ भा॰ कां॰ कमेटीको अगली बैठकमें कताई-सदस्यता हटा देनेका निर्णय लिया जाये तो वे त्यागपत्र दे देंगे और एक कताई-संस्थाकी अलगसे स्थापना करेंगे।"