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२४५. वंचनासे भरा भाषण

[१८ जुलाई, १९२५]

लॉर्ड बर्कनहेडका ऐलान दो अर्थोंमें वंचना करनेवाला है। वह दूसरी मर्तबा पढ़नेपर उतना कठोर नहीं लगता जितना पहली मर्तबा पढ़नेपर लगा था; परन्तु उसे दूसरी मर्तबा पढ़नेपर उससे भी ज्यादा निराशा होती है, जितनी पहली मर्तबा पढ़ने पर हुई थी। उन्होंने सोच-समझकर कठोरतापूर्ण बातें नहीं कही हैं। भारत मन्त्रीने जो कहा है बेसाख्ता कहा है। उन्होंने जो महसूस किया या कहना चाहिए उन्हें जो महसूस कराया गया वही उन्होंने कह दिया है। उनके वादे भी केवल देखनेमें ही लुभावने हैं। यदि हम उन्हें ध्यानसे देखें तो उनसे हमपर यह छाप पड़ती है कि उन वादोंको करनेवाला इस बातको जानता है कि उसे उनको पूरा करनेकी जरूरत कभी नहीं पड़ेगी। अच्छा, हम पहले उसी वादेको लें जो सबसे अधिक प्रलोभनकारी है। व्यवहारतः उसका भाव यह है——'आप अपना संविधान तैयार कर लें और हम उसपर विचार करेंगे।' क्या यह हमारा ३५ सालका अनुभव नहीं है कि हमने अपने खयालके मुताबिक बिलकुल निर्दोष प्रार्थनापत्र भेजे हैं और वे 'गौरसे विचार करनेके बाद' अस्वीकार कर दिये गये हैं? ऐसा अनुभव होनेपर हमने १९२० में भिक्षा-नीति छोड़ दी और निश्चय किया कि हम अपने ही उद्योगपर निर्भर रहेंगे, भले ही हम उस प्रयत्नमें नष्ट-भ्रष्ट ही क्यों न हो जायें। लॉर्ड बर्केनहेड हमसे 'मुंशीपन' नहीं चाहते। वे तो हमें 'तेग बहादुरी' दिखानेका न्यौता देते हैं । वे अच्छी तरह जानते हैं कि इस निमन्त्रणको कोई न तो स्वीकार करेगा——और न स्वीकार कर ही सकता है। इसका प्रमाण उस भाषणमें ही मौजूद है। उनके सामने मुडीमैन समितिके अल्पमतकी अर्थात् डॉ॰ सप्रू और श्री जिन्नाकी रिपोर्ट मौजूद थी। डॉ॰ सप्रू और श्री जिन्ना दो निहायत होशियार वकील हैं जिन्होंने कभी असहयोग करनेका कुसूर नहीं किया है, और उनमें से एक तो वाइसरायकी कौंसिलके कानूनी सदस्य भी रहे हैं। उन्हें तथा उनके साथीको जवाब यह मिला है कि उनमें इस कामकी समझ नहीं है। उस संविधानपर जिसे पण्डित मोतीलाल नेहरू तैयार करें और परम माननीय श्रीनिवास शास्त्री और मियाँ फजली हुसैन[१]-जैसे लोग पुष्ट करें, अधिक अनुकूल विचार किये जानेकी सम्भावना है? क्या लॉर्ड बर्कनहेडका यह प्रस्ताव असावधान लोगोंको फँसानेके लिए बिछाया गया जाल नहीं है? फर्ज करें कि मौजूदा हालकी जरूरत रफा करनेके लिए सच्चाईसे कोई संविधान तैयार किया जाता है, उसे बेजा बताकर उसके बजाय कोई बहुत ही छोटी-सी चीज देनेका प्रस्ताव नहीं किया जायेगा? मैं जब मुश्किलसे २५ सालका था तभी मुझे यह विश्वास करना सिखाया गया था कि यदि तुम समझो कि तुम चार आनेसे संतुष्ट हो सकते हो तो वह चार आने

  1. वायसरायके कार्यकारिणी परिषद्के सदस्य।