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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

और बहुतांशमें ब्रिटिश भारतकी स्वतन्त्रता मिलनेके बाद अपने-आप हल हो जायेगा। देशी राज्योंकी राजनीति कितनी ही बुरी हो, फिर भी ब्रिटिश भारतमें शक्ति हो तो वह आज स्वाधीन हो सकता है। इसलिए कर्म-फल निकालनेमें हमें ब्रिटिश भारतकी प्रजाके कर्मोंका भी हिसाब लगाना होगा। यदि हम उस हिसाबमें देशी राज्योंको जोड़ेंगे तो फल गलत निकलेगा। वास्तवमें तो देशी राज्य भी अंग्रेजी सत्ताके ही प्रतीक हैं। वे उसीके अधीन हैं। वे उसके प्रति जवाबदेह हैं भी और नहीं भी हैं। कर देने और उस सत्ताके प्रति बफादार रहनेका जहाँतक सम्बन्ध है, वहाँतक वे उसके प्रति जवाबदेह हैं और प्रजाके और उनके सम्बन्धोंका जहाँतक ताल्लुक है वे लगभग स्वतन्त्र हैं। वे प्रजाके प्रति तो बेशक जवाबदेह नहीं हैं। इससे उनके आसपासके वायुमण्डलमें दोष-ग्रहणकी शक्ति बढ़ती है अथवा दूसरे शब्दोंमें कहें तो उनके सम्मुख अन्यायी बनने के अनेक प्रलोभन रहते हैं। वे जो-कुछ थोड़ा बहुत न्याय करते हैं उसका भी कारण है उनकी बची-खुची स्वतन्त्र नीति। खूबी तो यह है कि देशी राज्य बिलकुल निरंकुश होते हुए भी और अंग्रेजी सत्ताकी अनीतिके समर्थक होते हुए भी अबतक न्याय-नीतिकी यत्किचित् रक्षा कर रहे हैं। इस स्थितिका श्रेय हिन्दुस्तानकी प्राचीन गौरवमयी सभ्यताको है।

इस प्रकार मैं देशी राज्योंका बचाव नहीं कर रहा हूँ। मैं तो वस्तुस्थितिको पहचानकर और 'सेवक' का विचार-दोष दिखाकर उसकी निराशा दूर करनेका प्रयत्न मात्र कर रहा हूँ। देशी-राज्य चाहे कितने ही बुरे हों परन्तु यदि फिर भी ब्रिटिश सत्ताके अधीन रहनेवाले करोड़ों भारतवासी अपने योग्य सामाजिक गुणोंको व्यक्त कर सकें तो वे स्वतन्त्रता प्राप्त कर सकते हैं। देशी-राज्य इन गुणोंके विकासमें चाहें तो बहुत मदद कर सकते हैं। परन्तु यदि वे मदद न करें और विरोध करें तो भी राष्ट्र उन गुणोंको व्यक्त कर सकता है।

वे गुण क्या हैं, इसका विचार हम समय-समयपर कर चुके हैं——चरखा, खादी, हिन्दू-मुस्लिम एकता और अस्पृश्यता निवारण। ये गुण अहिंसा द्वारा स्वराज्य प्राप्त करनेके लिए आवश्यक हैं। यदि हमें तलवारके बलसे स्वराज्य प्राप्त करना हो तो फिर इनमें से किसी भी गुणकी जरूरत नहीं। परन्तु फिर वह स्वतंत्रता जनताकी स्वतन्त्रता न होगी, एक बाहुबल-धारीकी स्वतन्त्रता होगी। जनता तो कढ़ाईसे निकलकर चूल्हेमें गिरेगी। गहुँवे रंगके डायर श्वेतवर्णी डायरसे अधिक ग्राह्य न होंगे। तब तो देशी राज्योंकी जिस स्थितिका रोना 'सेवक' रो रहे हैं वही स्थिति सारे भारतकी होगी; क्योंकि जो समुदाय तलवारके द्वारा अंग्रेजोंसे सत्ता छीनेगा, क्या वह प्रजाके प्रति उत्तरदायी रहेगा? असि, तलवार, शमशीर, 'सोर्ड' सब एक ही वस्तुके पर्याय हैं।

देशी राज्योंसे अंग्रेजी राज्य जरूर नरम होगा। यही तो अंग्रेजी राज्यकी खूबी है। अंग्रेजोंको तो पक्ष-विशेषको प्रसन्न रखकर ही शासन चलाना पड़ता है। इसीलिए मध्यमवर्गी लोगोंको निरन्तर अन्याय नहीं सहना पड़ता। अंग्रेजोंके अन्यायका क्षेत्र बड़ा है। इससे वह मात्रामें बहुत होते हुए भी व्यक्तिशः कम मालूम होता है और हम दीर्घकालसे उसके अभ्यस्त हो जानेके कारण उसको पहचान भी नहीं