पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 27.pdf/४४५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४१३
पत्र : देवदास गांधीको

समझता हूँ कि अब परिवर्तित दशामें, जो कि देशके सामने है, इस मर्यादाको कायम रखनेकी आवश्यकता नहीं है। इसलिए मैं खुद ही आपको इस मर्यादाके बन्धनसे केवल मुक्त ही नहीं करता बल्कि मैं आगामी अ॰ भा॰ कांग्रेस कमेटीसे भी कहना चाहता हूँ कि वह भी ऐसा ही करे और कांग्रेसके समूचे तन्त्रको आपके हवाले कर दे जिससे आप उसमें ऐसे राजनैतिक प्रस्ताव प्रस्तुत कर सकें, जिन्हें आप देशके हितके लिए आवश्यक समझें। असलमें मैं यह चाहता हूँ कि मैं जिन-जिन मामलोंमें अपनी अन्तरात्माको सामने रखकर आपकी और स्वराज्यदलकी सेवा कर सकता हूँ, आप उन सबमें मुझे अपना वशवर्ती समझें।[१]

हृदयसे आपका,
मो॰ क॰ गांधी

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २३-७-२९२५
 

२५०. पत्र : देवदास गांधीको

सोमवार [२० जुलाई, १९२५][२]

चि॰ देवदास,

इस समय तो कार्ड ही लिख रहा हूँ। यह भी गनीमत है। तुमने मेरी सहायताका अर्थ अधिक समझ लिया है। जैसा तुम कहते हो वैसी सहायताके लिए तुम्हें सुरक्षित रखनेकी आवश्यकता मैं नहीं समझता। सभी विधान सभाओंमें जाते हों तो चले जायें। मैं तो उनमें जानेके लिए अथवा किसीको उनमें भेजनेके लिए तैयार नहीं हूँ। हमारा काम तो केवल चरखा ही है। यदि देशबन्धु जीवित रहते तो मुख्यत: यहीं काम करते। चरखमें उनकी दिलचस्पी इतनी गहरी हो गई थी। किन्तु ये सब बातें तो जब मिलेंगे तब होंगी। फिलहाल तो सारा वक्त दस लाखकी रकम इकट्ठी करनेमें और पण्डितजीसे[३] बात करनेमें जाता है। अखबारोंकी सामग्री लिखनेके लिए तो शायद ही कुछ वक्त बचता है।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (जी॰ एन॰ २१३२) की फोटो-नकलसे।

 
  1. मोतीलालजीके उत्तरके लिए देखिए परिशिष्ट ५।
  2. डाककी मुहरमें "कलकत्ता, २१ जुलाई, १९२५" है। सोमवार २० जुलाईका था।
  3. पं॰ मोतीलाल नेहरू।