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२५१. पत्र : राजेन्द्र प्रसादको

२१ जुलाई, १९२५

प्रिय राजेन्द्र बाबू,

समय बचानेके लिए मुझे तुम्हें यह पत्र अंग्रेजीमें लिखना पड़ेगा। मेरा दाहिना हाथ काम नहीं दे रहा है। बायें हाथसे लिखनेमें बहुत समय लगता है। इसलिए मैं इस समय आशुलिपिककी मदद ले रहा हूँ। वैसे मैंने यह आज ही से शुरू किया है। अ॰ भा॰ कां॰ कमेटीकी बैठक पटनामें होना असम्भव लग रहा है। महाराष्ट्र और मद्रास एवं विशेषकर मद्रासके लोगोंको बहुत सख्त शिकायत है; और उनकी शिकायतोंमें काफी तथ्य है। इसलिए सबने बम्बईमें करना तय किया है। इस बार हम इस बैठकमें पूरी-पूरी उपस्थिति चाहते हैं; क्योंकि ऐसे महत्त्वपूर्ण प्रस्तावोंपर चर्चा करनी है जो संविधान और नीतिमें रद्दोबदलसे सम्बन्धित हैं। मैं चाहता हूँ कि उन प्रस्तावोंपर, वे जैसे भी हों, चर्चा उस समय हो जब सभी सदस्य उपस्थित हों। किन्तु यदि मुझे सितम्बरके शुरूमें बिहार बुला सकना सम्भव लगे तो मैं तब आ सकता हूँ। पर मैं वहाँ कमसे-कम समय लगाना चाहूँगा। यदि तुम पूरे महीने मुझे रोकना चाहो तो वह भी हो सकेगा। यों तो चूँकि तुम मुझे पुरुलिया बुला रहे हो और चूँकि सभी कार्यकर्त्ता वहाँ आ रहे हैं, इस समय तुम्हारा मुझे अन्य केन्द्रोंमें ले जाना अनावश्यक ही होगा। पर यह सब तय करना तुम्हारा काम है। जो आदमी तुम्हारा सन्देश लेकर आया था उससे मैंने कह दिया है कि मैं १२ को पुरुलिया पहुँच जाऊँगा। फिर भी अगर तुम मेरा इससे भी पहले वहाँ पहुँचना जरूरी समझो तो सूचित तो करना ही। प्रबन्ध ऐसा रखो जिससे मैं ३० सितम्बरको बम्बई पहुँच जाऊँ। बिहारके सब सदस्योंको अ॰ भा॰ कां॰ कमेटीकी बैठकमें शामिल होना चाहिए। चरखा-सम्बन्धी परिपत्र मैंने अभी नहीं पढ़ा है, मैं इसे अगले एक सप्ताहतक पढ़ लेनेकी आशा रखता हूँ और 'यंग इंडिया' के अगले अंकमें इसके बारेमें लिखूँगा। हाँ, अब अखिल भारतीय स्मारक सम्बन्धी विज्ञप्ति भी प्रकाशित हो जायेगी। जवाहरलाल इसके बारेमें पहले लिख ही चुके हैं। इस कोषकी पूरी रकम चरखे और खद्दरके प्रचारमें व्ययकी जायेगी। यद्यपि कोषकी अपीलमें ऐसी कोई बात नहीं कही गई थी पर जहाँतक सम्भव होगा एक प्रान्तमें इकट्ठी की गई रकम उसी प्रान्तमें खर्चकी जायेगी। तथापि सारा खर्चा अ॰ भा॰ [कां॰] कमेटीकी मार्फत होगा...।[१]

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १०६७९) की माइक्रोफिल्मसे।

 
  1. पूरा पत्र उपलब्ध नहीं है।