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२५२. अखिल भारतीय स्मारक

[२२ जुलाई, १९२५ या उससे पूर्व][१]

हम नीचे दस्तखत करनेवाले लोगोंकी यह राय है कि देशबन्धु चित्तरंजन दासकी याद अमिट बनानेके लिए अखिल बंगाल स्मारककी तरह अखिल भारतीय स्मारक बनाना भी आवश्यक है। जिस तरह वे समस्त बंगालके थे उसी तरह समस्त भारतके भी थे। जिस तरह हम उनके अखिल बंगाल स्मारकके सम्बन्धमें उनकी आकांक्षा जानते हैं, उसी तरह हम उनके अखिल भारतीय स्मारकके सम्बन्धमें भी उनकी आकांक्षा जानते हैं। उन्होंने एक सालसे कुछ पहले अपना यह विचार स्पष्ट रूपसे प्रकट कर दिया था और अपने फरीदपुरके भाषणमें दुहरा भी दिया था कि उन्हें गाँवोंके पुनसंगठनके द्वारा भारतको पुनरुज्जीवित करना और शान्तिपूर्ण विकासात्मक विधिसे स्वराज्य प्राप्त करना अतिशय प्रिय है। हम यह भी जानते हैं कि वे मानते थे कि इस कामका आरम्भ देहातोंमें हाथ-कताईका पुनरुद्धार और विकास करके तथा घर-घर खादीका प्रचार करके किया जा सकता है और यही ग्रामसंगठनका मध्यबिन्दु है। यही एकमात्र ऐसी प्रवृत्ति है जो सारे देशके लिए सर्वसामान्य हो सकती है और फिर भी जो बहुत थोड़ी लागतसे चलाई जा सकती है। यही एकमात्र ऐसी प्रवृत्ति मानी जाती है, जिससे तुरन्त फल मिल सकता है, फिर वह चाहे जितना ही कम क्यों न हो? देशके तमाम लोग, वे चाहे अमीर हों या गरीब, बूढ़े हों या जवान, पुरुष हों या स्त्री, चाहें तो इसमें निजी रूपमें सहायता दे सकते हैं और जुट जा सकते हैं। देहातियोंसे शहरी लोगोंको एकरस बनानेका और शिक्षित लोगोंको उनसे परिचित करानेका इससे बढ़कर उपयोगी तरीका दूसरा नहीं है। यही एक ऐसी प्रवृत्ति है जो कि भारतके तमाम प्रान्तों और पन्थोंके लिए सामान्य हो सकती है और जो जबर्दस्त आर्थिक परिणाम उत्पन्न कर सकती है। अन्तमें, यद्यपि इसका राजनैतिक पक्ष भी है तथापि इसका रूप स्पष्टतः इतना आर्थिक और सामाजिक है कि इसमें उन सब लोगोंकी, बिना दल सम्बन्धी भेद-भावके, सहायता ली जानी चाहिए, जो चरखेको आर्थिक उत्थान और ग्रामसंगठनका एक महान् साधन मानते हैं।

ऐसी व्यवस्थामें हम उनका चरखे और खादीके सार्वत्रिक प्रचारसे बढ़कर कोई अन्य समुचित स्मारक नहीं सोच सकते और इसलिए हम इस कार्यके निमित्त धन देनेकी प्रार्थना करते हैं। हम इस स्मारकके लिए आवश्यक राशिकी मात्रा नियत नहीं कर रहे हैं; क्योंकि इसमें तो जितना धन मिलेगा, सबका-सब खप सकता है।

  1. स्पष्ट है कि यह संयुक्त अपील २२ जुलाईको, गांधीजीकी एक दूसरी अपीलके जारी करनेके दिन ही, जिसमें इसका उल्लेख है, लिखी गई थी और उसपर उसी दिन हस्ताक्षर किये गये थे। देखिए अगला शीर्षक