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२५४. पत्र : शौकत अलीको

कलकत्ता
२२ जुलाई, १९२५

मेरे प्यारे दोस्त और बिरादर,

आपके दोनों पत्र मिले। मुझे अभी खुद लिखनेकी कोशिश नहीं करनी चाहिए। मेरे दाहिने हाथमें कोई भी काम करनेकी ताकत नहीं है। उसे आराम चाहिए। इसीलिए बोलकर लिखवा रहा हूँ। शुएबसे मेरी लम्बी बात हुई। उसका कहना है कि वह 'कॉमरेड' के कामके लायक है ही नहीं; और यह सम्पादकीय कामकी अयोग्यताके कारण नहीं बल्कि इसलिए कि उसके स्वभावका उससे मेल नहीं बैठता। वह कहता है कि बुरी तरह नाकामयाब होनेके लिए ही वहाँ जानेमें क्या लाभ है। चूँकि अब मैं शुएबको जान गया हूँ, मुझे उसकी बातमें काफी वजन मालूम होता है। अगर फौरन और ठीक-ठीक मदद नहीं मिलती तो मेरा यह निश्चित मत है कि मुहम्मद अलीको दोनों पत्रोंको या कमसे-कम एकको बन्द कर देना चाहिए। हार निश्चित ही दिखाई देनेपर अच्छा सिपाही चतुराईसे पीछे हट जाता है। वह पूरी-पूरी बरबादी और कत्लेआमका इन्तजार नहीं करता रहता। फिर भी इस मामलेमें आप उससे ज्यादा जानते हैं। आपके व्यावहारिक ज्ञानमें मेरा आज भी वैसा ही अटल विश्वास है जैसा कि पहले था। इसलिए आप तय करके मुहम्मद अलीको उसपर अमल करनेके लिए कहें। मैं अखबार पढ़े बिना जितना हो सकता है आप दोनोंकी हलचलोंकी खबर रखता हूँ। हमारे लिए बल्कि और भी ठीक कहूँ तो आपके लिए भी लड़ाई अभी शुरू ही हुई है। मैं 'आपके लिए' सिर्फ इसलिए कहता हूँ, कि मैं तो लोग जिन्हें मुश्किलें, खतरे और शिकस्त कहते हैं, उनका अबतक आदी हो चुका हूँ। मेरा दिल और मेरी दुआएँ आपके साथ हैं।

दस लाखकी रकम इकट्ठा होनेतक मुझे कलकत्ता ही रहना है। यह एक कठिन काम है। पर गरीबसे-गरीब बंगालीको भी पैसे और धेला देते हुए देखकर मुझे बड़ा अच्छा लगता है। आपको यह तो पता ही होगा कि मैं स्वराज्यवादियोंके लिए क्या कर रहा हूँ, और अभीतक कितना क्या कर चुका हूँ। मैं जो-कुछ मदद कर सकता हूँ, करनेका प्रयत्न कर रहा हूँ और खुद मुझे तो यही लगा है कि कांग्रेसको पूरी तरह उन्हींके हाथमें रहना चाहिए। इसलिए हम लोग जो कौंसिलोंमें जाना ठीक नहीं मानते वे अगर कांग्रेसमें रहते हैं तो अपने बलपर रहें। इस बार मैंने समझौता करनेकी बातको टाल दिया है[१]। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी कोई भी निर्णय लेनेके लिए पूरी तरह स्वतन्त्र होगी; मेरे या किसी दूसरेके हस्तक्षेपका सवाल नहीं उठता। मेरी हदतक मुझे इस बातका पक्का विश्वास होता जा

  1. देखिए "भाषण : स्वराज्यदलको बैठकमें", १७-७-१९२५ की पाद-टिप्पणी २।