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पत्र : कृष्णदासको

रहा है कि अन्य सब-कुछ छिन्न-भिन्न हो जानेके बाद भी कताई और खद्दर तो बने ही रहेंगे। बड़ेसे-बड़े तूफानके बीच अडिग रहनेवाली अगर कोई चीज है तो वह है जोरदार और खतरेसे खाली रचनात्मक कार्यक्रम। मेरी समझमें शुएब मेरे मनमें क्या है, सो समझ गया है और शंकरलाल भी; वह अभी यहाँ था। बाकीका सब आप उनसे तथा 'यंग इंडिया' से जान सकते हैं; जो दिन-ब-दिन दोस्तोंके नाम मेरे हफ्तेवाराना खतकी शक्ल अख्त्यार करता जा रहा है।

हृदयसे आपका,

मौलाना शौकत अली

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९३३९) की फोटो-नकलसे।

 

२५५. पत्र : कृष्णदासको

२२ जुलाई, १९२५

प्रिय क्रिस्टोदास,

मैंने सतीश बाबूसे हरदयाल बाबूके[१] नाम सौ रुपये भेजनेको कहा है। मेरे दायें हाथमें कुछ तकलीफ है। इसलिए पत्र बोलकर लिखवा रहा हूँ।

तुम्हारे बारेमें मुझे सतीश बाबूसे मालूम होता रहता है। तुम्हें जल्दीसे-जल्दी तन्दुरुस्त और तगड़ा हो जाना चाहिए। सारी मानसिक चिन्ताएँ एक तरफ रख दो। उम्मीद है, तुम जल्दीसे-जल्दी कोमिल्ला जा रहे हो। जमनालालजी आतराई जा रहे हैं। चाँदपुर रवाना होनेसे पहले शायद वे कुछ दिन वहाँ रुकेंगे। इसलिए तुम तबीयत सुधार लेनेके ख्यालसे एकदम कोमिल्ला जा सको तो ठीक होगा।

हृदयसे तुम्हारा,

बी॰ कृष्णदास
द्वारा राधा माधवसिंह
चाँदपुर

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९३३८) की माइक्रोफिल्मसे।

 
  1. हरदयाल नाग।