२५६. पत्र : निशीथनाथ कुण्डूको
१४८, रसा रोड
कलकत्ता
२२ जुलाई, १९२५
आपका पत्र मिला। दीनाजपुर कमेटीकी स्थितिके बारेमें मैंने देशबन्धुसे चर्चा जरूर की थी। उन्होंने मुझे बताया था कि इस समय प्रान्तीय कमेटीके लिए आपकी-जैसी किसी जिला कमेटीको कोई मदद दे सकना कठिन है। कमेटीके पास पैसा नहीं है। ऐसी स्थितिमें मैं यही सलाह दे सकता हूँ कि जिन कार्यकर्त्ताओंका खादीमें पूरा विश्वास है उन्हें चाहिए कि ये खादी प्रतिष्ठानके साथ पत्रव्यवहार करके उसके अन्तर्गत कार्य करें।
हृदयसे आपका,
मो॰ क॰ गांधी
अंग्रेजी पत्र (जी॰ एन॰ ८०२१) की फोटो-नकलसे।
२५७. कताई-सदस्यता
गत १७ जुलाईको स्वराज्यवादियों और अन्य लोगोंकी एक अनौपचारिक सभा हुई।[१]उपस्थित जनोंमें सभी विचारोंके लोग थे। उन सभीको और मुझे भी यह जँचा कि मताधिकारमें परिवर्तन करना आवश्यक है और कांग्रेसके मताधिकारमें सूत-कताई विकल्पके रूपमें स्थायी बना दी जाये, केवल प्रयोगके रूपमें न रखी जाये। इसका अर्थ यह हुआ कि मजदूरोंका कांग्रेसमें सीधे प्रतिनिधि भेजनेका अधिकार स्थायी रूपसे स्वीकृत कर लिया गया। सभी लोगोंकी यह राय थी कि मताधिकारमें दूसरोंका कता सूत लेना बन्द कर दिया जाना चाहिए इससे लोगोंमें दम्भ उपजा है और बेईमानी भी पैदा हुई है। खुद-काता सूत या पैसा कितना दिया जाये यह प्रश्न अभी तय नहीं किया गया है। इसपर भिन्न-भिन्न रायें थीं। उपस्थित जनोंका बहुत बड़ा बहुमत इस बातके पक्षमें था कि खादी पहनना मताधिकारका स्थायी अंग मान लिया जाये। यह मेरी रायमें एक निश्चित लाभ हुआ है। तीसरी बात जो सर्वसम्मतिसे तय हुई यह है कि एक अखिल भारतीय चरखा संघ कायम किया जाये और वह कांग्रेसका एक अभिन्न अंग रहे। उसे इस बातका पूरा अधिकार दे दिया जाये कि वह कांग्रेसके
- ↑ देखिए "भाषण : स्वराज्यदलकी बैठकमें", १७-७-१९२५।