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कताई-सदस्यता

कताईके कामका संचालन करे और कांग्रेसके कारकुनके तौरपर कताई-सदस्यतामें भेजे जानेवाले सूतको प्राप्त करे और उसकी जाँच करें। यदि ये सिफारिशें मंजूर हो गई तो इनका फल यह होगा कि स्वराज्यवादी कांग्रेसके सूत्रधार बन जायेंगे और अखिल भारतीय चरखा संघ स्वराज्य दलका स्थान ग्रहण कर लेगा।

इन प्रस्तावोंपर अ॰ भा॰ कांग्रेस कमेटीकी १ अक्तूबरको होनेवाली बैठकमें विचार किया जायेगा। इस बैठकमें सदस्योंकी आजादीपर किसी किस्मकी कैद न रहेगी। यहाँतक कि वे लोग भी, जो इस अनौपचारिक बैठकमें शरीक थे, अपनी वहाँ दी हुई रायसे बँधे न होंगे। यदि आगे विचार करनेपर उनकी राय बदल जाये तो वे इन प्रस्तावोंके, जो उस बैठकमें रखे जायेंगे खिलाफ राय देनेके लिए आजाद होंगे। अ॰ भा॰ कांग्रेस कमेटीके सदस्य उनमें अपनी इच्छाके अनुसार संशोधन पेश करने और आलोचना करनेके लिए भी स्वतन्त्र रहेंगे। हर शख्स एक कांग्रेसीकी हैसियतसे, अधिक ठीक कहें तो अपनेको एक हिन्दुस्तानी समझकर बिना किसी दल या पक्ष दायित्वका लिहाज किये अपनी राय देगा। पाठक पं॰ मोतीलालजीके नाम लिखे गये मेरे पत्रसे[१] देखेंगे कि मैंने स्वराज्यदलको अपना कर्त्तव्य समझकर पिछले सालके करारके दायित्वसे मुक्त कर दिया है। अ॰ भा॰ कांग्रेस कमेटीमें उपस्थित किये जानेवाले प्रस्तावोंपर गुणदोषकी दृष्टिसे ही विचार किया जाना चाहिए। मैं नहीं चाहता कि कोई भी सदस्य, फिर वह स्वराज्यवादी हो या अपरिवर्तनवादी, मेरी मनःतुष्टिका खयाल करके अपनी राय दे। हम एक प्रजासत्तात्मक संविधान बनानेके लिए प्रयत्नशील हैं। हर व्यक्तिको चाहिए कि वह अपनी अन्तरात्माके अनुकूल मत व्यक्त करे, किसी व्यक्ति-विशेषकी बात न सोचे, फिर चाहे वह कितना ही बड़ा क्यों न हो। मेरे नजदीक न कोई परिवर्तनवादी है और न अपरिवर्तनवादी। वे लोग जो कि कौंसिलोंमें जानेके हामी हैं तथा वे लोग जो कि उसके खिलाफ हैं, दोनों समान रूपसे देश-सेवा करते हैं; बशर्ते उनका कुछ करना या न करना देशप्रेमसे प्रेरित हो। बेशक, मैं तो उन लोगोंसे, जिन्हें कौंसिलोंके प्रवेशमें शुद्ध रूपसे अन्तःकरणकी आपत्ति नहीं है, यह भी कहूँगा कि वे स्वराज्यवादीदलमें तुरन्त शरीक हो जायें और उसे मजबूत बनायें।

मैं आशा करता हूँ कि अ॰ भा॰ कांग्रेस कमेटीका हर सदस्य उसकी अगली बैठकमें उपस्थित होगा और कार्रवाईमें शरीक होकर अपनी राय देगा। जहाँतक मेरी बात है, मैं यह नहीं चाहता कि यह मामला बहुमतसे तय किया जाये। जो-कुछ तय किया जाये वह लगभग सर्वसम्मतिसे तय किया जाना चाहिए।

इस प्रस्तावका हेतु कांग्रेसके संविधानमें महत्त्वपूर्ण परिवर्तन करना है। मामूली तौरपर अ॰ भा॰ कांग्रेस कमेटीको संविधानमें दखल देनेकी जरूरत नहीं होती। परन्तु ऐसा समय भी आता है जब ऐसा न करना संस्थाके प्रति गैर-वफादारीका काम हो जाता है। यदि देशका भारी लोकमत उसमें परिवर्तन करना चाहता है और उसमें देर-दारकी गुंजाइश नहीं है तो अ॰ भा॰ कांग्रेस कमेटीके लिए निहायत मुनासिव होगा कि वह उसमें परिवर्तन कर दे और उस परिवर्तनके परिणामोंको एवं कांग्रेस द्वारा की

  1. देखिए "पत्र : मोतीलाल नेहरूको", १९-७-१९२५।